Friday, 17 March 2017

अर्ज़े-ए-मुरत्तिब-१ सआदत हसन मन्टो saadat hasan manto

अगर मैं इस हक़ीक़त का बरमला एतराफ़ कर लूं तो बेजा न होगा कि मुद्दत से मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं सआदत हसन मंटो की तहरीरों को मुरत्तब करूं और ये मेरी ख़ुश-क़िसमती है कि मुझे अपनी इस ख़्वाहिश को हक़ीक़त का रूप देने का मौक़ा मिला। सआदत हसन मंटो उर्दू अदब का ऐसा रौशन सितारा है जिस की चमक दूर तक और देर तक दिखाई पड़ती है।

मंटो की वफ़ात को ५७ साल गुज़र चुके हैं और इस साल हम उस का सौ साला जश्न-ए-विलादत मना रहे हैं। बीसवीं सदी में उर्दू मैं जो चंद अज़ीम लिखने वाले पैदा हुए इन में सआदत हसन मंटो भी शामिल हैं उस ने अपनी तहरीरों से सिन्फ़-ए-अफ़साना को एतबार बख्शा। उस ने अपनी तहरीरों मैं अपने अस्र की ऐसी जानदार अक्कासी की कि हमें अगर मंटो के अह्द के इंसान और इस अह्द के मुआशरे को समझना है तो हमारे सामने सब से मोतबर दस्तावेज़ सआदत हसन मंटो की तहरीरें हैं।

मुसतनद और जामे कुल्लियात-ए-मंटो की इशाअत का मंसूबा बनाया तो ये बात मेरे पेश-ए-नज़र थी कि इस से पेशतर सआदत हसन मंटो की तहरीरों को कुल्लियात की शक्ल में पाकिस्तान और भारत में अलग अलग शाय किया जा चुका है तो अब इस तीसरी कोशिश के लिए गुंजाइश कैसे निकलेगी। जब मैंने ग़ौर से संग-ए-मील लाहौर से शाय होने वाले कुल्लियात-ए-मंटो की छः जिल्दों का मुताला किया तो इन में कई फ़ाश अग़लात दिखाई दीं।

इसी तरह भारत में जो कुल्लियात-ए-मंटो की छः जिल्दें डाक्टर हुमायूँ अशरफ़ ने मुरत्तब कीं हैं इन में भी अग़लात मौजूद हैं और सब से बढ़ कर ये कि मंटो के तराजुम को कुल्लियात में जगह नहीं दी गई। सआदत हसन मंटो के कुल्लियात मुरत्तब करने की इन कोशिशों पर मैंने मौजूदा कुल्लियात की तीसरी जिल्द में कुल्लियात सआदत हसन मंटो और तदवीन-ए-मतन के मसाइल में तफ़सीली बात की है।

मुसतनद और जामे कुलयात-ए-मंटो में इस बात का ख़याल रख्खा गया है कि मंटो का मतन मेयार और मिक़दार पर दो एतबार से पहले से बेहतर हो ताकि उर्दू अदब के क़ारेईन को बिल-उमूम और सआदत हसन मंटो के क़ारेईन को बिलख़ुसूस इस कुल्लियात के मुताले से पहले से ज़्यादा फ़र्हत और ताज़गी मिले। मौजूदा हालत में कुल्लियात-ए-सआदत हसन मंटो को सात जिल्दों में मुरत्तब किया गया है। पहली तीन जिल्दें अफ़सानों के लिए मुख़तस हैं। चौथी जिल्द ड्रामे, पांचवीं ख़ाके, छट्टी मज़ामीन जबकि सातवीं जिल्द तराजुम पर मुश्तमिल है।

सआदत हसन मंटो के अफ़सानों को तीन जिल्दों में मुरत्तब करते हूए मंटो के तख़लीक़ी सफ़र को पेशे नज़र रखा गया है । पहली जिल्द में क़याम-ए-पाकिस्तान से क़बल शाय होने वाले मंटो के छः अफ़सानवी मजमूओं को यकजा किया गया है इन में बाअज़ अफ़साने एक से ज़्यादा बार शाय हूए थे। उन्हें सिर्फ़ एक मुक़ाम पर जगह दी गई है । यूं इस जिल्द में 61 अफ़साने शामिल हैं। दूसरी जिल्द में क़याम-ए-पाकिस्तान से लेकर मंटो की वफ़ात तक आठ अफ़सानवी मजमूओं और एक अफ़सांचों के मजमुए को जगह दी गई है। इस तक़सीम को रवा रखने की बुनियाद मंटो के अहम तरीन नक़्क़ादों मुहम्मद हसन अस्करी और मुमताज़ शीरीं की तरफ़ से ये निशानदही है कि क़याम-ए-पाकिस्तान से मंटो के फ़न में कैफ़ियती तबदीली वाक़्य हुई थी। इस जिल्द में 65 अफ़साने और 32 अफ़सांचे शामिल हैं।

तीसरी जिल्द में इन तमाम अफ़सानों को यकजा कर दिया गया है जो या तो किताबी सूरत में मंटो की वफ़ात के बाद सामने आए या फिर मुख़्तलिफ़ रसाइल और मंटो के हवाले से मुरत्तब होने वाली किताबों में मौजूद थे। इस जिल्द में 88 अफ़साने और एक नावल शामिल है।

मंटो की तख़्लीक़ात को अस्नाफ़ में तक़सीम करने के बाद तारीख़ी एतबार से तर्तीब दिया गया है ताकि मुसन्निफ़ के फ़िक्री और ज़हनी इर्तिक़ा को समझना आसान हो सके। तर्तीब की बुनियाद किताबों को बनाया गया है और किताब के अंदर इसी तर्तीब को बरक़रार रख्खा गया है जो ख़ुद मुसन्निफ़ ने बनाई थी। मंटो की वफ़ात के बाद कई एक इशाअती इदारों ने मंटो के ख़लत मलत मजमुए शाय किए थे। मसलन मंटो के तीसरे अफ़सानवी मजमुए धूवां को एक इशाअती इदारे ने दो हिस्सों में तक़सीम कर के धूवां और काली शलवार के नाम से अलग अलग शाय कर दिया था । ज़ाहिर है इस तरह की कोशिशें काबिल-ए-मज़म्मत हैं। या मंटो के मुख़्तलिफ़ अफ़सानवी मजमूओं से अफ़साने लेकर नया मजमूआ बना दिया गया। ये भी कोई काबुल-ए-सताइश बात नहीं। ज़ेर-ए-नज़र कुल्लियात में कोशिश की गई है कि सिर्फ़ मुसतनद मतन को जगह दी जाये और ग़ैर मोतबर तहरीरों से गुरेज़ किया जाये।

मुसतनद और जाम कुलयात-ए-मंटो की तदवीन में राक़िम को बतौर-ए-ख़ास जनाब मुहम्मद सलीम-उल-रहमान, जनाब डाक्टर तहसीन फ़िराक़ी और जनाब डाक्टर ज़िया-उल-हसन की फ़िक्री मुआवनत हासिल रही। इन अस्हाब के मश्वरों ने मेरे लिए काम को सहल बनाया। इस कुल्लियात में अगर सलीक़े की कोई बात नज़र आए तो वो इन अस्हाब के मश्वरों की बदौलत है और जो खामियां दिखाई पड़ें वो मेरी कम इल्मी और सुसती की बदौलत हैं। ज़ाहिद हसन ने एक से ज़्यादा जिल्दों की पुरूफ़ रीडिंग में मदद दी मैं इस हवाले से उन का ख़ुसूसी तौर पर शुकर गुज़ार हूँ।

जनाब आमिर राना से दोस्ताना मरासिम एक मुद्दत से ज़िंदगी का हिस्सा है उन्हों ने इस कुल्लियात की इशाअत का ज़िम्मा लेकर उर्दू अदब और खासतौर पर सआदत हसन मंटो की ख़िदमत की है। मैं खासतौर पर इन का शुक्र गुज़ार हूँ मुझ पर अपने छोटे भाई अंजुम कामरान का शुक्रिया अदा करना भी वाजिब है कि इस ने निहायत सब्र और तहम्मुल से तबाअत के मुख़्तलिफ़ मराहिल पर काम किया।

मुसतनद और जामे कुल्लियात-ए-मंटो की तर्तीब और तदवीन में मैंने छः माह तक सुबह-ओ-शाम सर्फ़ किए। इस दौरान मेरे पढ़ने के कमरे में हर तरफ़ सआदत हसन मंटो की किताबें और उन से मुतअल्लिक़ किताबें बिखरी रहती थीं। मेरे बच्चे बार बार पूछते थे कि ये काम कब तक ख़त्म होगा। जब उन के अंदाज़ों से ये काम ज़्यादा तवील होगया तो मेरे बेटों हारिस अमजद और कामिल अमजद ने अपने खेल में कुछ बुनियादी नौईयत की तबदीलीयां कीं। अब उन के दरमियान रेसलिंग का जो मुक़ाबला होता उस में कामिल अगर हारिस को मुक्का मारता तो ये मंटो अफ़साने थे हारिस जब कामिल का मुक्का रोकता तो मंटो ड्रामे का नारा बुलंद करता, हारिस की किक मंटो ख़ाके थी और कामिल का बलॉक करना मंटो मज़ामीन थे। यूं उन्हों ने अपने खेल में सआदत हसन मंटो को मुस्तक़िल हिस्सा बना लिया था। मेरी बेटियां रोमा अमजद और सूफ़िया अमजद इस दौरान मेरे पास बैठ कर मुझे काम करता देखतीं। पापा ये कब ख़त्म होगा पूछतीं और फिर अपने काम में मसरूफ़ हो जातीं। फ़हमीदा अमजद, मेरी निस्फ़ बेहतर, मेरी शरीक-ए-ज़िंदगी होने से लेकर अब तक मुझे काम का बेहतर माहौल देने में कोशां रही। इस दौरान में वो मेरे लिखे काम को पढ़ते हूए अपने तबसरे भी किए जाती है और सच्ची बात है कि उस के बाअज़ तबसरे बड़े पुर-मग़्ज़ होते हैं और मेरे लिए बड़े मुफ़ीद साबित होते हैं। उस का शुक्रिया मैं अदा नहीं करूंगा कि अपनों का शुक्रिया कौन अदा करता है।

क़ारेईन से इल्तिमास है कि मुसतनद और जामे कुल्लियात-ए-मंटो का बग़ौर मुताला करे ये कुल्लियात मुरत्तब करते हूए मैंने सआदत हसन मंटो की किताबों के अव्वलीन या मंटो की ज़िंदगी में शाय होने वाले ऐडीशनों को बुनियाद बनाया है सिवाए तीन चार किताबों के कि जिन के अव्वलीन ऐडीशन मुझे दस्तयाब न हो सके। इस कुल्लियात को अग़लात से पाक रखने की कोशिश की है लेकिन कोई भी काम कामिल और अग़लात से पाक नहीं होता। क़ारेईन की तरफ़ से होने वाली अग़लात की निशानदही हमें मौक़ा फ़राहम करेगी कि हम इस कुल्लियात के दूसरे ऐडीशन को ज़्यादा मुफ़ीद और कारआमद बना सकें। आप की राय का इंतिज़ार रहेगा।

अमजद तुफ़ैल

यक्म जुलाई २०१२-ई- 

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