Friday, 17 March 2017

चचा साम के नाम मंटो के खत - सआदत हसन मंटो Saadat Hasan Manto Vyang /Satire

 

चचा साम के नाम मंटो के खत - सआदत हसन मंटो Saadat Hasan Manto Vyang /Satireसआदत हसन मंटो

पूरा नाम
सआदत हसन
अन्य नाम  -मंटो
जन्म-11 मई, 1912
जन्म भूमि-समराला, पंजाब
मृत्यु-18 जनवरी, 1955
मृत्यु स्थान-लाहौर, पंजाब
अभिभावक
ग़ुलाम हसन, सरदार बेगम
पति/पत्नी
सफ़िया
संतान-तीन पुत्रियां
कर्म भूमि-साहित्य
मुख्य रचनाएँ
तमाशा, बू, ठंडा गोश्त, टोबा टेक सिंह, खोल दो, घाटे का सौदा, हलाल और झटका, ख़बरदार, करामात, बेख़बरी का फ़ायदा, पेशकश
विषय
कहानी, फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक, पत्रकार
भाषा
हिन्दी, उर्दू
विद्यालय
मुस्लिम हाईस्कूल, अमृतसर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
नागरिकता
भारतीय
अन्य जानकारी
सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएँ लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है।

पहला खत



चचाजान, अस्‍सलामुअलैकुम!

यह खत आपके पाकिस्‍तानी भतीजे की तरफ से है, जिसे आप नहीं जानते - जिसे आपकी सात आजादियों की सल्तनत में शायद कोई भी नहीं जानता। मेरा देश हिंदुस्‍तान से कटकर क्‍यों बना? कैसे आजाद हुआ? यह तो आपको अच्‍छी तरह मालूम है। यही वजह है कि मैं खत लिखने की हिम्‍मत कर रहा हूँ, क्‍योंकि जिस तरह मेरा देश कट कर आजाद हुआ उसी तरह मैं कट कर आजाद हुआ और चचाजान, यह बात तो आप जैसे सब कुछ जानने वाले से छुपी हुई नहीं होनी चाहिए कि जिस पक्षी को पर काटकर आजाद किया जाएगा, उसकी आजादी कैसी होगी! खैर इस किस्‍से को छोड़िए।

मेरा नाम सआदत हसन मंटो है और मैं एक ऐसी जगह पैदा हुआ था, जो अब हिंदुस्‍तान में है - मेरी माँ वहाँ दफन है, मेरा बाप वहाँ दफन है, और मेरा पहला बच्‍चा उस जमीन में सो रहा है लेकिन वह अब मेरा वतन नहीं - मेरा वतन अब पाकिस्‍तान है, जो मैंने अंग्रेजों के गुलाम होने की हैसियत में पाँच-छ: बार देखा था।

मैं पहले सारे हिंदुस्‍तान का एक बड़ा कहानीकार था, अब पाकिस्‍तान का एक बड़ा कहानीकार हूँ। मेरी कहानियों के कई संकलन छप चुके हैं। लोग मुझे इज्जत की निगाहों से देखते हैं। साबुत हिंदुस्‍तान में मुझ पर तीन मुकदमे चले थे और यहाँ पाकिस्‍तान में एक, लेकिन इसे बने अभी बरस ही कितने हुए हैं। अंग्रेजों की हुकूमत भी मुझे अश्‍लील लेखक समझती थी, मेरी अपनी हुकूमत का भी मेरे बारे में यही खयाल है। अंग्रेजों की हुकूमत ने मुझे छोड़ दिया था, लेकिन मेरी अपनी हुकूमत मुझे छोड़ती नजर नहीं आती - निचली अदालतों ने मुझे तीन माह कैद बामशक्कत और तीन सौ रुपए जुर्माने की सजा दी थी। सेशन में अपील करने पर मैं बरी हो गया, मगर मेरी हुकूमत समझती है कि उसके साथ नाइंसाफी हुई है। इसलिए अब उसने हाई कोर्ट में अपील की है कि वह सेशन के फैसले पर दुबारा गौर करे और मुझे सही और माकूल सजा दे - देखिए, हाईकोर्ट क्‍या फैसला देती है।

मेरा देश आपका देश नहीं। इसका मुझे अफसोस है - अगर हाईकोर्ट मुझे सजा दे दे तो मेरे देश में ऐसा कोई अखबार नहीं जो मेरी तसवीर छाप सके, मेरे तमाम मुकदमों की कार्रवाई की तफसील छाप सके।

मेरा देश बहुत गरीब है। उसके पास आर्ट पेपर नहीं है, उसके पास अच्‍छे छापेखाने नहीं हैं - उसकी गरीबी का सबसे बड़ा सुबूत मैं हूँ। आपको यकीन नहीं आएगा चचाजान कि बाईस किताबों का लेखक होने के बाद भी मेरे पास रहने के लिए मकान नहीं। और यह सुनकर तो आप हैरत में डूब जाएँगे कि मेरे पास सवारी के लिए कोई पैकार्ड है न डॉज सैकिंडहैंड मोटर-कार भी नहीं।

मुझे कहीं जाना हो तो साइकिल किराए पर लेता हूँ। अखबार में अगर मेरा कोई लेख छप जाए और सात रुपए प्रति कॉलम के हिसाब से मुझे बीस-पच्‍चीस रुपए मिल जाएँ तो मैं ताँगे में बैठता हूँ और अपने यहाँ की बनाई हुई शराब भी पीता हूँ। यह ऐसी शराब है कि अगर आपके देश में बनाई जाए तो आप उस डिस्‍टलरी को एटम बम से उड़ा दें, क्‍योंकि एक बरस के अंदर-अंदर ही यह खानाखराब इंसान को बिल्‍कुल ही बर्बाद कर देती है।

मैं कहाँ-से-कहाँ पहुँच गया - असल में मुझे भाईजान अर्सकाइन काल्‍डवैल (Erskine coldwell) को आपके जरिए से सलाम भेजना था। उनको तो खैर आप जानते ही होंगे। उनके एक उपन्‍यास 'गाड्ज लिटिल एकर' (God's Little Acre) पर आप मुकदमा चला चुके हैं - जुर्म वही था जो अक्सर यहाँ मेरा होता है, यानी 'अश्‍लीलता'।

यकीन जानिए, चचाजान, मुझे बड़ी हैरत हुई थी, जब मैंने सुना था कि उनके उपन्‍यास पर सात आजादियों के मुल्‍क में अश्‍लीलता के इल्जाम में मुकदमा चला है - आपके यहाँ तो हर चीज नंगी है। आप तो हर चीज का छिलका उतारकर अल्‍मारियों में सजाकर रखते हैं, वह फल हो या औरत, मशीन हो या जानवर, किताब हो या कैलेंडर। आप तो नंगेपन के बादशाह हैं - मेरा खयाल था, आपके देश में पवित्रता का नाम अश्‍लीलता होगा मगर चचाजान, आपने यह क्‍या गजब किया कि भाईजान अर्सकाइन काल्‍डवैल पर मुकदमा चला दिया।

मैं इस गम से असरअंदाज होकर अपने देश की देसी शराब अधिक मात्रा में पीकर मर गया होता, अगर मैंने फौरन ही मुकदमे का फैसला न पढ़ लिया होता। यह मेरे देश की बदकिस्‍मती तो हुई कि एक इंसान खस-कम-जहाँ-पाकहोने से रह गया, लेकिन फिर मैं आपको यह खत कैसे लिखता। वैसे मैं बड़ा आज्ञाकारी हूँ। मुझे अपने देश से प्‍यार है। मैं, इन्‍शाअल्‍लाह थोड़े ही दिनों में मर जाऊँगा। अगर खुद नहीं मरूँगा तो खु़द-ब-खुद मर जाऊँगा, क्‍योंकि जहाँ आटा रुपए का पौने तीन सेर मिलता हो, वहाँ बड़ा ही निर्लज्ज इंसान होगा जो जिंदगी के पारंपरिक चार दिन गुजार सके।

हाँ तो मैंने मुकदमे का फैसला पढ़ा और मैंने देसी शराब अधिक मात्रा में पीकर खुदकुशी का इरादा तर्क कर दिया - भाई, चचाजान, कुछ भी हो, आपके यहाँ हर चीज पर कलई चढ़ी है लेकिन वह जज, जिसने भाईजान अर्सकाइन काल्‍डवैल को अश्‍लीलता के जुर्म से बरी किया, उसके दिमाग पर यकीनन कलई का झोल नहीं था। अगर यह जज - (अफसोस है कि मैं उनका नाम नहीं जानता) - जि़ंदा हैं तो उनको मेरा अकीदत भरा सलाम जरूर पहुँचा दीजिए।

उनके फैसले की यह आखिरी पंक्तियाँ उनके दिमाग की ताकत और गहराई का पता देती हैं। मैं व्‍यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूँ कि ऐसी किताबों को सख्ती से दबा देने से पढ़नेवालों में खामखाह जिज्ञासा और हैरत पैदा होती है जो उन्हें कामुकता की टोह लगाने की तरफ प्रोत्‍साहित कर देती है, हालाँकि असल किताब की यह मंशा नहीं है। मुझे पूरा विश्‍वास है कि इस किताब में रचानाकार ने सिर्फ वही चीज चुन कर ली है जिसे वह अमरीकी जि़ंदगी के किसी विशेष वर्ग के संबंध में सच्‍चा समझता है। मेरी राय में सच्‍चाई को अदब के लिए हमेशा उचित और स्थिर रहना चाहिए।

मैंने निचली अदालतों को यही कहा था लेकिन उसने मुझे तीन माह कैदे-बामशक्कत और तीन सौ रुपए की सजा दी - उसकी राय यह थी कि सच्‍चाई को अदब से हमेशा दूर रखना चाहिए - अपनी-अपनी राय है।

मैं तीन माह कैदे-बामशक्कत काटने के लिए हमेशा तैयार हूँ लेकिन यह तीन सौ रुपए का जुर्माना मुझसे अदा न हो सकेगा - चचाजान, आप नहीं जानते, मैं बहुत गरीब हूँ। मेहनत का तो मैं आदी हूँ, लेकिन रुपयों का आदी नहीं। मेरी उम्र उंतालीस बरस के करीब है और यह सारा दौर मेहनतकशी में ही गुजरा है। आप जरा गौर तो फरमाइए कि इतना बड़ा लेखक होने पर भी मेरे पास कोई पैकार्ड नहीं।

मैं गरीब हूँ, इसलिए कि मेरा देश गरीब है। मुझे तो फिर दो वक्‍त की रोटी किसी-न-किसी हीले मिल जाती है, मगर मेरे कुछ भाई ऐसे भी हैं जिन्‍हें यह भी नसीब नहीं होती।

मेरा देश गरीब है, जाहिल है - क्‍यों, यह तो आपको पूरी तरह से पता है - यह आपके और आपके भाईजान बुल के साझे साज का ऐसा तार है जिसे मैं छेड़ना नहीं चाहता, इसलिए कि आपकी सुनने की शक्ति पर भारी पड़ेगा - मैं यह खत एक खुशनसीब बेटे की हैसियत से लिख रहा हूँ, इसलिए मुझे पहले और आखिर तक खुशनसीब बेटा ही रहना चाहिए।

आप जरूर पूछेंगे : "तुम्‍हारा देश गरीब क्‍योंकर है, ज‍बकि हमारे मुल्क से इतनी पैकार्डें, इतनी ब्‍युकें, मैक्‍स फैक्‍टर का इतना सामान वहाँ जाता है…"

यह सब ठीक है चचाजान, मगर मैं आपके इस सवाल का जवाब नहीं दूँगा। आप अपने सवाल का जवाब खुद अपने दिल से पूछ सकते हैं, अगर आपने अपने काबिल सर्जनों से कहकर उसे अपने पहलू से निकलवा न दिया हो।

मेरे मुल्क की वह आबादी, जौ पैकार्डों और ब्‍यूकों पर सवार होती है, मेरा मुल्‍क नहीं - मेरा मुल्‍क वह है, जिसमें मुझ ऐसे और मुझसे बदतर गरीब बसते हैं।

यह बड़ी कड़वी बातें हैं हमारे यहाँ शक्‍कर कम है, वर्ना मैं इन पर चढ़ाकर आपकी सेवा में पेश करता - इसको भी छोड़िए।

बात दरअसल यह है कि मैंने हाल ही में आपके मुल्‍क के एक साहित्‍यकार ऐवलिन वॉग (Evelyn Waugh) की एक रचना (The Loved Once) पढ़ी है। मैं इससे इतना प्रभावित हुआ कि आपको यह खत लिखने बैठ गया - आपके मुल्क की अनुपमता का मैं यूँ भी प्रशंसक था, मगर यह किताब पढ़कर तो मेरे मुँह से तुरंत निकला :

जो बात की, खुदा की कसम, लाजवाब की
    वाहवा, वाहवा, वाहवा, वाहवा
    चचाजान वल्‍लाह मजा आ गया। कैसे दिलवाले लोग आपके देश में बसते हैं!

एवलिन वॉग (Evelyn Waugh) हमें बताता है कि आपके कैलिफोर्निया में मुर्दों, यानी बिछड़े हुए अजीजों पर भी कॉस्मेटिक कलई की जा सकती है और उसके लिए बड़ी-बड़ी कंपनियाँ मौजूद हैं - मरनेवाले अजीज की शक्‍ल भद्दी हो तो इनमें से किसी में भेज दीजिए - फार्म मौजूद है। उसमें अपनी इच्‍छाएँ दर्ज कर दीजिए। काम मनपसन्‍द होगा। यानी मुर्दे को आप जितना खूबसूरत बनवाना चाहें, दाम देकर बनवा सकते हैं। अच्‍छे-से-अच्‍छा माहिर मौजूद है जो मुर्दे के जबड़े का ऑपरेशन करके उस पर मीठी-से-मीठी मुस्‍कराहट बिठा सकता है। आँखों में रोशनी पैदा की जा सकती है, माथे पर जरूरत के हिसाब से नूर पैदा किया जा सकता है। और यह सब काम ऐसी कुशलता से होता है कि कब्र में यमदूत भी धोखा खा जाएँ।

भई खुदा की कसम चचाजान, आपके मुल्‍क का कोई जवाब पैदा नहीं हो सकता।

जिंदों पर ऑपरेशन सुना था - प्‍लास्टिक सर्जरी से जिंदा आदमियों की शक्‍ल सँवारी जा सकती है, इसके बारे में भी यहाँ कुछ चर्चे हुए थे, मगर यह नहीं सुना था कि आप मुर्दों तक की शक्‍ल सँवार देते हैं।

यहाँ आपके मुल्‍क का एक हब्‍शी आया था। कुछ दोस्‍तों ने मुझसे उनका परिचय कराया। उस वक्‍त मैं भाई ऐवलिन वॉग (Evelyn Waugh) की किताब पढ़ चुका था - मैंने उनसे उनके मुल्‍क की तारीफ की और ये शेर पढ़ा :

एक हम हैं कि लिया अपनी ही सूरत को बिगाड़
    एक वह हैं जिन्‍हें तसवीर बना आती है

काले साहब मेरा मतलब न समझे, मगर हकीकत यह है चचाजान कि हमने अपनी सूरत को बिगाड़ रखा है। इतना बिगाड़ रखा है कि अब वह पहचानी भी नहीं जाती, अपने आपसे भी नहीं - और एक आप हैं कि भद्दी सूरत मुर्दों तक की शक्‍ल सँवार देते हैं। सच तो यह है कि इस दुनिया के तख्‍ते पर एक सिर्फ आपकी कौम को ही जिंदा रहने का हक हासिल है बाखुदा बाकी सब झक मार रहे हैं।

हमारी जबान उर्दू का एक शाइर गालिब हुआ है। उसने आज से करीब-करीब एक सदी पहले कहा था :
    हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्‍यों न गर्के़-दरिया
    न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता

गरीब को जिंदगी में अपनी बदनामी का डर नहीं था, क्‍योंकि वह शुरू से आखिर तक दुनिया से उपेक्षित रहा उसको इस बात का डर था कि मरने के बाद भी बदनामी होगी। आदमी जिद्दी था। उसे डर नहीं, विश्‍वास था, इसलिए उसने अपने शव को दरिया में बहा देने की इच्‍छा जाहिर की कि न जनाजा उठे न मजार बने।

काश! वह आपके देश में पैदा हुआ होता। आप उसका बड़ी शानो-शैकत से जनाजा उठाते और उसका मजार स्‍काई स्‍क्रैपर की सूरत बनाते, और अगर उसकी इच्‍छा पर अमल करते तो शीशे का हौज तैयार करते, जिसमें दुनिया गर्क होने तक उसकी लाश रहती और चिड़ियाघर में लोग उसे जा-जाकर देखते।

भाई ऐवलिन वॉग (Evelyn Waugh) बताता है कि वहाँ मुर्दा इंसानों ही के लिए नहीं, मुर्दा हैवानों के नयन-नक्‍श सँवारने वाली संस्‍थाएँ भी मौजूद हैं। हादिसे में अगर किसी कुत्ते की दुम कट जाती है तो दूसरी लगा दी जाती है। स्वर्ग सिधार जाने वाले की शक्‍लो-सूरत में उसकी जिंदगी में जितने ऐब थे, उसकी मौत के बाद कुशलता से ठीक कर देते हैं और उसे शानो-शौकत के साथ दफना दिया जाता है। उसकी क‍ब्र पर फूल चढ़ाने का इंतजाम भी कर दिया जाता है - और हर साल, जिस रोज किसी का पालतू मरा हो, उस संस्‍था की तरफ से एक कार्ड भेज दिया जाता है जिस पर कुछ इस प्रकार से लेख होता है : जन्‍नत में आपका टौमी या जिम्‍मी आपकी याद में अपनी दुम या कान हिला रहा है।

हमसे तो आपके देश के कुत्ते ही अच्‍छे - यहाँ आज मरे, कल दूसरा दिन-यहाँ किसी का कोई अजीज मरता है तो उस गरीब पर एक आफत टूट पड़ती है और वह दिल-ही-दिल में चिल्‍ला उठता है : 'कमबख्‍त यह क्‍यों मरा… मुझे ही मौत आ गई होती…'

सच तो यह है चचाजान, हमें मरने का सलीका आता है न जीने का।

आपके देश में एक साहब ने तो कमाल ही कर दिया - उनको यकीन नहीं था कि उनकी मौत के बाद उनका जनाजा सलीके और करीने से उठेगा, इसलिए उन्‍होंने अपनी जिंदगी ही में अपने कफन-दफन की बहार देख ली। यह उनका हक था। वह बड़ी शालीनता, नफासत और ऐशोराम, की जिंदगी बसर करते थे। हर चीज उनकी इच्‍छा के मुताबिक होती थी। हो सकता है, उनका जनाजा उठाने में किसी से कोई जाने-अंजाने में गलती हो जाती। बहुत अच्‍छा किया जो उन्‍होंने जिंदगी ही में अपनी मौत की सजावट और बनाव-सिंगार देख लिया - मरने के बाद होता रहे जो होता है।

ताजा 'लाइफ' - 5 नवंबर, 1951 : इंटरनेशनल एडिशन - देखा। वल्‍लाह, आप लोगों की जिंदगी का एक और अनुकरणीय पहलू आँखों के सामने रौशन हुआ। दो पूरे सफहों पर तसवीरों के साथ आपके देश के मशहूरों - मारुफ गैंगस्‍टर के जनाजे का पूरा वृत्तांत विस्‍तार से दिया हुआ था। दल्‍ली मोरीटी, खुदा उसे करवट-करवट जन्‍नत, नसीब करे, कि छवि देखी। उसका वह आलीशान घर देखा जो उसने हाल ही में पचपन हजार डालर में बेचा था। उसकी वह पाँच एकड़ की एस्‍टेट भी देखी जहाँ वह दुनिया के हंगामों से अलग होकर आराम और चैन की जिंदगी बसर करना चाहता था। दिवंगत का वह फोटो भी देखा जिसमें वह बिस्‍तर पर हमेशा के लिए आँखें बंद किए लेटा है। उसका पाँच हजार डालर का ताबूत और उसके जनाजे का जुलूस, जो फूलों से लदी-फँदी ग्‍यारह बड़ी-बड़ी मलोजीनों और पिचहत्तर कारों पर रखा है, देखकर, आँखों में आँसू आ गए, वह अल्‍लाह ही गवाह है।

मेरे मुँह में खाक, अगर आपका देहांत हो जाए तो खुदा आपको दल्‍ली मोरीटी से ज्यादा इज्जत और शान इनायत फरमाए - यह पाकिस्‍तान के एक गरीब लेखकी की दिली दुआ है, जिसके पास सवारी के लिए एक टूटी-फूटी साइकिल भी नहीं। वह आपसे एक निवेदन भी करता है कि क्‍यों न आप अपने देश के दूरदर्शी आदमी की तरह अपनी जिंदगी में ही अपना जनाजा उठता देख लें - आदमी आदमी ही है, हो सकता किसी से भूल-चूक हो जाए। हो सकता है, आपके चेहरे का कोई नयन-नक्‍श सँवरने से रह जाए और आपकी आत्‍मा को आघात पहुँचे।

संभव है, आप यह खत पहुँचने से पहले ही अपना जनाजा अपनी इच्‍छानुसार विशाल धूमधाम से उठवा के देख चुके हों, इसलिए कि आप मुझसे कहीं ज्‍यादा महान विवेकशील हैं और मेरे चचा हैं।

भाईजान अर्सकाइन काल्‍डवैल को सलाम और जज साहब को भी, जिन्‍होंने उनको अश्‍लीलता के जुर्म से बरी किया था।

कोई गुस्‍ताखी हो गई तो माफ फरमाएँ।

दुआ सलाम के साथ।

आपका मुफ्लिस भतीजा

सआदत हसन मंटो

16 दिसंबर, 1951

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड, लाहौर

दूसरा खत



चचाजान

तस्‍लीमात!

बहुत पहले, मैंने आपकी खिदमत में एक खत भेजा था - आपकी तरफ से तो उसकी कोई मिलने की इत्लिा न आई मगर, कुछ दिन हुए, आपके दूतावास के एक साहब जिनका नाम मुझे इस वक्त याद नहीं, शाम को मेरे घर पर पधारे थे। उनके साथ एक स्‍वदेशी नौजवान भी थे। उन साहबान से जो बातचीत हुई उसका खुलासा, लिख देता हूँ।

उन साहब से अंग्रेजी में बातचीत हुई - मुझे हैरत है चचाजान कि वह अंग्रेजी बोलते थे, अमरीकी नहीं जो मैं सारी उम्र नहीं समझ सकता।

बहरहाल उनसे आध-पौन घंटा बातें हुई - वह मुझसे मिलकर बहुत खुश हुए, जिस तरह हर अमरीकी हर पाकिस्‍तानी या हिंदुस्‍तानी से मिलकर खुश होता है - मैंने भी यही जाहिर किया कि मुझे बड़ी खुशी हुई, वास्‍तव में सच्‍चाई यह है कि मुझे गोरे अमरीकनों से मिलकर कोई राहत या खुशी नहीं होती। आप मेरे बेबाक पन का बुरा न मानिएगा।

पिछले महायुद्ध के दौरान मैं बंबई में रहता था - एक रोज मुझे बंबे सेंट्रल जाने का इत्तिफाक हुआ - उन दिनों वहाँ आप ही के देश का दौरदौरा था। बेचारे टामियों को कोई पूछता ही नहीं था। बंबई में जितनी एँग्‍लों इंडियन, यहूदी और पारसी लड़कियाँ थीं, अमरीकी फौजियों की बगल में चली गईं थीं।

चचाजान मैं आपसे सच अर्ज करता हूँ, कि जब आपके अमरीका का कोई फौजी किसी यहूदी, पारसी या एँगलो इंडियन लड़की को अपने साथ चिपटाए गुजरता था तो टामियों के सीने पर साँप लोट जाते थे।

असल में आपकी हर अदा निराली है - हमारे फौजी को तो यहाँ इतनी तनख्‍वाह मिलती है कि वह उसका आधा पेट भी नहीं भर सकती, मगर आप एक मामूली चपड़ासी को इतनी तनख्‍वाह देते हैं कि अगर उसके दो पेट भी हों तो वह उनको नाक तक भर दे।

चचाजान, गुस्‍ताखी माफ - क्‍या यह फ्रॉड तो नहीं - आप इतना रुपया कहाँ से लाते हैं -छोटा मुँह और बड़ी बात है, लेकिन आप जो काम करते हैं, उसमें, ऐसा मालूम होता है, नुमाइश-ही-नुमाइश है - हो सकता है कि मैं गलती पर हूँ, मगर गलतियाँ इंसान ही करता है और मेरा खयाल है कि आप भी इंसान हैं। अगर नहीं है तो मै इसके बारे में कुछ नहीं कह सकता।

मैं कहाँ-से-कहाँ चला गया-बात बंबे सेंट्रल रेलवे स्‍टेशन की थी।

मैंने वहाँ आपके कई फौजी देखे। उनमें ज्यादातर गोरे थे। कुछ काले भी थे-आपसे सच अर्ज करता हूँ कि वह काले उन गोरे फौजियों के मुकाबले में कहीं ज्यादा मोटे-मोटे और सेहतमंद थे।

मेरी समझ में नहीं आता कि आपके मुल्‍क के लोग ज्‍़यादातर चश्‍मा क्‍यों इस्‍तेमाल करते हैं-गोरों ने तो खैर चश्‍मे लगाए ही हुए थे, कालों ने भी लगाए हुए थे, जिन्‍हें आप 'हब्‍शी' कहते हैं और आवश्‍यक हो तो लिंच भी कह देते हैं-यह काले क्‍यों चश्‍में की जरूरत महसूस करते हैं?

मेा ख्‍याल है कि यह सब आपकी कूटनीति है-आप चूँकि सात आजादियों के दावेदार हैं, इसलिए आप चाहते हैं कि इन कालों को, जिन्‍हें आप बड़ी आसानी से हमेशा के लिए आराम की नींद सुला सकते हैं और सुलाते रहें हैं, एक मौका दिया जाए कि वह आपकी दुनिया को, आपके चश्‍मे से देख सकें।

मैंने वहाँ बंबे सेंट्रल के स्‍टेशन पर एक हब्‍शी फौजी देखा। उसके डेंटर यह मोटे-मोटे थे-वह इतना सेहतमंद था कि मैं डर के मारे सुकड़ के आधा हो गया, लेकिन फिर भी मैंने हिम्‍मत से काम लिया।

वह अपने सामान के साथ टेक लगाए सुस्‍ता रहा था-उसकी आँखें मुँदी हुई थीं। मैं उसके पास गया-मैंने बूट के जरिए से आवाज पैदा की। उसने आँखें खोलीं तो मैंने उससे अंग्रेजी में कहा, जिसका सारांश यह था : "मैं यहाँ से गुजर रहा था कि आपकी शख्‍़सीअत को देखकर ठहर गया…" इसके बाद मैंने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।

उस काले-कलूटे फौजी ने, जो चश्‍मा लगाए हुए था, अपना फौलादी पंजा मेरे हाथ में दे मारा इससे पहले कि मेरी सारी हड्डियाँ चूर-चूर हो जातीं, मैंने उससे निवेदन किया : "खुदा के लिए…बस इतना ही काफी है!"

उसके काले-काले और मोटे-मोटे होंठो पर मुसकराहट पैदा हुई और उसने ठेठ अमरीकी लहजे में मुझसे पूछा : "तुम कौन हो?"

मैंने अपना हाथ सहलाते हुए जवाब दिया : "मैं यहाँ का बाशिंदा हूँ… यहाँ स्‍टेशन पर तुम नजर आ गए तो तुरंत दिल चाहा कि तुमसे दो बातें करता जाऊँ।"

उसने मुझसे अजीबो-गरीब सवाल किया : "यहाँ इतने फौजी मौजूद हैं, तुम्‍हें मुझ ही से मिलने की इच्‍छा क्‍यों पैदा हुई?"

चचाजान, सवाल टेढ़ा था लेकिन जवाब खुद-ब-खुद मेरी जबान पर आ गया।

मैंने उससे कहा : "मैं काला हूँ और तुम भी काले हो… मुझे काले आदमियों से प्‍यार है।"

वह और ज्‍़यादा मुस्‍कराया।

उसके काले और मोटे होंठ मुझे इतने प्‍यारे लगे कि मेरा जी चाहा, इन्‍हें चूम लूँ।

चचाजान, आपके यहाँ बड़ी खूबसूरत औरतें हैं - मैंने आपकी एक फिल्‍म देखी थी - क्‍या नाम था उसका - हाँ या आ गया : 'बेदिंग ब्‍यूटी।' यह फिल्‍म देखकर मैंने अपने दोस्‍तों से कहा था: "चचाजान इतनी खूबसूरत टाँगें कहाँ से इकट्ठी कर लाए हैं।" मेरा खयाल है, करीब-करीब दो ढाई सौ के करीब तो जरूर होंगी।"

चचाजान, क्या वास्‍तव में आपके देश में ऐसी टाँगें आम होती हैं…? अगर आम होती हैं तो खुदा के लिए - अगर आप खुदा को मानते हैं - इनकी नुमाइश कम से कम पाकिस्‍तान में बंद कर दीजिए।

हो सकता है, यहाँ, आपकी औरतों की टाँगों के मुकाबले में कहीं ज्‍यादा अच्‍छी टाँगें हों -मगर चचाजान, यहाँ कोई उनकी नुमाइश नहीं करता। खुदा के लिए यह सोचिए कि हम सिर्फ अपनी बीवी की ही टाँगें देखते हैं। दूसरी औरतों की टाँगें देखना हम पाप समझते हैं - हम बड़े पुराने खयालात के आदमी हैं।

बात कहाँ से निकली थी, कहाँ चली गई - मैं मुआफी नहीं माँगना चाहता क्‍योंकि आप ऐसे ही दस्‍तावेज पसंद करते हैं।

कहना यह था कि आपके वह साहब, जो यहाँ के दूतावास से संबंधित हैं, मेरे पास पधारे और मुझसे निवेदन किया कि मैं उनके लिए एक कहानी लिखूँ।

मैं स्‍तब्‍ध रह गया, इसलिए कि मुझे अंग्रेजी में लिखना आता ही नहीं - मैंने उनसे अर्ज किया की : "जनाब मैं उर्दू जबान का राइटर हूँ… मैं अंग्रेजी लिखना नहीं जानता।"

उन्‍होंने फरमाया : "कहानी उर्दू ही में चाहिए हमारा एक अखबार है, जो उर्दू में छपता है।" मैंने इसके बाद अधिक खोज बीन की जरूरत न समझी और कहा : "मैं तैयार हूँ।"

और खुदा जानता है कि मुझे मालूम नहीं था, वह आपके कहने पर मेरे घर तशरीफ लाए हैं - क्‍या आपने उन्हें मेरा वह खत पढ़वा दिया था, जो मैंने आपको लिखा था? खैर, इस हादसे को छोड़िए - जब तक पाकिस्‍तान को गेहूँ की जरूरत है, मैं आपसे कोई गुस्‍ताखी नहीं कर सकता - वैसे प्रतिष्ठित पाकिस्‍तानी होने के नाते - हालाँकि मेरी सरकार मुझे इस काबिल नहीं समझती -मेरी दुआ है कि खुदा करे, कभी आपको भी बाजरे और निकसुक के साग की जरूरत पड़े और मैं जिंदा रहूँ कि आपको भेज सकूँ।

अब सुनिए - उन साहब ने, जिनको आपने भेजा था, मुझसे पूछा : "आप एक कहानी के कितने रुपए लेंगे?"

चचाजान, संभव है, आप झूठ बोलते हों और आप निःसंदेह झूठ बोलते हैं, मजाक में ही सही।

यह फन मेरे नसीब में नहीं है।

उस रोज मैंने एक नौसिखिया के तौर पर झूब बोला और उनसे कहा : "मैं एक कहानी के लिए दो सौ रुपए लूँगा।"

अब हककीत यह है कि यहाँ के पब्लिशर मुझे एक कहानी के लिए ज्‍यादा-से-ज्‍यादा चालीस-पचास रुपए देते हैं - मैंने 'दो सौ रुपए' कह तो दिए लेकिन मुझे इस एहसास से अंदरूनी तौर पर सख्त शर्मिंदगी हुई कि मैंने इतना झूठ क्‍यों बोला - अब क्‍या हो सकता था।

लेकिन चचाजान, मुझे सख्‍त हैरत हुई, जब आपके भेजे हुए साहब ने बड़ी हैरानी से - मालूम नहीं वह मजाक था या असल - फरमाया : "सिर्फ दो सौ रुपए…! कहानी के लिए कम से कम पाँच सौ रुपए तो होने चाहिए।" मैं चकित हो गया कि एक कहानी के लिए पाँच सौ रुपए - यह तो मेरे ख्वाबो-खयाल में भी नहीं आ सकता था - लेकिन मैं अपनी बात से कैसे हट सकता था।

इसलिए मैंने चचाजान, उनसे कहा : साहब देखिए, दो सौ रुपए ही होंगे… बस अब आप इसके बारे में ज्यादा बातचीत न कीजिए।" वह चले गए, शायद इसलिए कि वह समझ चुके थे, मैंने पी रखी है। वह शराब, जो मैं पीता हूँ, उसका जिक्र मैं अपने पहले खत में कर चुका हूँ।

चचाजान, मुझे आश्‍चर्य है कि मैं अब तक जिंदा हूँ, हालाँकि मुझे पाँच बरस हो गए हैं यहाँ का कड़वा जहर पीते हुए। अगर आप यहाँ तशरीफ लाएँ तो आपको यह जहर पेश करूँगा। उम्‍मीद है, आप भी मेरी तरह अजीबोगरीब तौर पर जिंदा रहेंगे और आपकी सात आजादियाँ भी सुरक्षित रहेंगी।

खैर इस किस्‍से को छोड़िए।

दूसरे रोज सुबह-सवेरे जब कि मैं बरामदे में शेव कर रहा था, आपके वही साहब फिर घर पर आ गए - संक्षिप्‍त-सी बातचीत हुई।

उन्‍होंने मुझसे कहा : "देखिए, दो सौ की रट छोड़िए, तीन सौ ले लीजिए।" मैंने कहा : "ठीक है…"

और मैंने उनसे तीन सौ रुपए ले लिए - रुपए जेब में रखने के बाद मैंने उनसे कहा : "मैंने आपसे सौ रुपए ज्यादा वसूल किए हैं, लेकिन याद रहे कि जो कुछ मैं लिखूँगा, वह आपकी मर्जी के मुताबिक नहीं होगा। इसके अलावा उसमें किसी किस्‍म के बदलाव का हक आपको नहीं दूँगा…" वह चले गए - फिर नहीं आए।

चचाजान, अगर आपके पास पहुँचे हों और उन्‍होंने आपको कोई रिपोर्ट पहुँचाई हो तो कृपया तुरंत अपने पाकिस्‍तानी भतीजे को जरूर सूचित करें।

मैं वह तीन सौ रुपए खर्च कर चुका हूँ - अगर आप वापिस लेना चाहें तो मैं एक रुपया प्रतिमाह के हिसाब से चुका दूँगा।

उम्‍मीद है कि आप सात आजादियों समेत बहुत खुश होंगे।

खाकसार

आपका भतीजा

सआदत हसन मंटो, 1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड लाहौर

तीसरा खत

चचाजान,

तस्‍लीमात!

बहुत लंबे अर्से के बाद आपसे मुखातिब हो रहा हूँ। मैं वास्‍तव में बीमार था। इलाज इसका वही, खुशी पैदा करने वाला पानी था - साकी - मगर मालूम हुआ कि यह सिर्फ शाइरी है। मालूम नहीं, 'साकी' किस जानवर का नाम है। आप लोग तो उसे उम्र खैयाम की रुबाइयोंवाली अतिसुंदर नाज-नखरों वाली माशूका कहते हैं जो बिल्‍लौर की नाजुक गर्दन नुमा सुराहियों से उस खुशकिस्‍मत शाइर को जाम भर-भर के देती थी, मगर यहाँ तो कोई मूँछोंवाला बदशक्‍ल लौंडा भी इस काम के लिए नहीं मिलता।

यहाँ से हुस्‍न बिलकुल रफूचक्‍कर हो गया है - औरतें पर्दे से बाहर तो आई हैं, मगर उन्हें देखकर जी चाहता है कि वह पर्दे के पीछे ही रहतीं तो अच्‍छा था। आपके मैक्‍स फैक्‍टर ने उनका हुलिया और भी बिगाड़ के रख दिया है - आप मुफ्त गेहूँ भेजते हैं, मुफ्त लिट्रेचर भेजते हैं, मुफ्त हथियार भेजते हैं, क्‍यों नहीं आप सौ-दो सौ ठेट अमरीकी लड़कियाँ यहाँ रवाना कर देते जो साकीगिरी के फर्ज सलीके से निभा सकें। मैं अपनी बीमारी का जिक्र कर रहा था - इसका कारण वही यहाँ की बनी हुई शराब थी। अल्‍लाह इस खानाखराब का खानाखराब करे। जहर है लेकिन निहायत खालिस किस्‍म का - सबकुछ जानता था, सबकुछ समझता था, मगर :

मीर क्‍या सादा हैं, बीमार हुए जिसके सबब
    उसी अत्तार के लौंडे से दवा लेते हैं।

जाने उस दवा बेचने वाले लौंडे में क्‍या कशिश थी कि हजरत मीर उसी से दवा लेते रहे, हालाँकि वही उनकी बीमारी का कारण था - यहाँ मैं जिस दुकानदार से शराब लेता हूँ, वह तो मुझसे भी कहीं ज्‍यादा बीमार है। मैं तो अपनी सख्त जान की वजह से बच गया, लेकिन उसके बचने की कोई उम्‍मीद नहीं।

मैं तीन महीने हस्पताल में रहा हूँ। जनरल वार्ड में था। मुझे वहाँ आपकी कोई अमरीकी सहायता न मिली - मेरा खयाल है, आपको मेरी बीमारी की कोई खबर नहीं मिली, वर्ना आप जरूर वहाँ से दो-तीन पेटियाँ टेरामा‍इसिन की भेज देते और दोनों लोकों के पुन्‍य करम कमा लेते।

हमारी फॉरेन पब्लिसिटी बहुत कमजोर है। इसके अलावा हमारी सरकार को अदीबों, शाइरों और चित्रकारों से कोई दिलचस्‍पी नहीं । आखिर 'किस-किसकी हाजत रवा करे कोई।'

हमारी पिछली मरहूम गवर्नमेंट के आखिरी दौर में जंग शुरू हुई तो अंग्रेज बहादुर ने फिरदौसी-ए-इस्‍लाम (खिताब) हाफील जालंधरी को सौंग एँड पब्लिसिटी डिपार्टमेंट का डायरेक्‍टर बनाकर एक हजार रुपए प्रतिमाह तय कर दिया। पाकिस्‍तान बना तो उसको सिर्फ एक कोठी और शायद एक प्रेस अलाट हुआ। अब बेचारा अखबारों में अपना रोना रो रहा है कि 'तराना कमेटी' ने उसको निकाल बाहर किया है, जबकि सारे पाकिस्‍तान में अकेला वही शाइर है जो दुनिया की इस सबसे बड़ी इस्‍लामी सल्तनत के लिए कौमी तराना लिख सकता है और उसकी धुन भी बना सकता है - उसने अपनी अंग्रेज बीवी को तलाक दे दी है, इसलिए कि अंग्रेजों का जमाना ही नहीं रहा। अब सुना है, वह किसी अमरीकी बीवी की तलाश में है - चचाजान, खुदा के लिए उसकी मदद कीजिए, ऐसा न हो कि गरीब का परलोक भी दुखदायी हो। आपके यूँ तो लाखों और करोड़ों भतीजे हैं, लेकिन मुझ-जैसा भतीजा आपको एटम बम की रोशनी से भी कहीं नहीं मिलेगा। किबला कभी इधर भी ध्‍यान दीजिए। बस आपकी कृपा दृष्टि काफी है। सिर्फ इतना ऐलान कर दीजिए कि आपका देश, खुदा उसे रहती दुनिया तक सलामत रखे, सिर्फ उसी सूरत में पाकिस्‍तान को - खुदा इसके देसी शराब बनाने वाले कारखानों को बिल्‍कुल बरबाद कर दे - फौजी सहायता देने के लिए तैयार होगा, अगर सआदत हसन मंटो आपके हवाले कर दिया जाए।

यहाँ मेरी प्रतिष्‍ठा बहुत बढ़ जाएगी। मैं इस ऐलान के बाद शमा मुअम्‍मे और डायरेक्‍टर मुअम्‍मे हल करना बंद कर दूँगा। बड़ी-बड़ी शख्सियतें मेरे गरीबखाने पर आएँगी। मैं आपसे हवाई डाक द्वारा ठेठ अमरीकी मुस्‍कराहट मँगवाकर अपने होंठों पर चिपका लूँगा और उसके साथ उन सबका स्‍वागत करूँगा।

मेरी उस मुस्‍कराहट के हजार मायने होंगे। मिसाल के तौर पर "आप निरे खुरे गधे हैं…", "आप परले दर्जे के जहीन इंसान हैं…", "आपसे मिलकर मुझे बहुत कोफ्त हुई", …"आपसे मिलकर निहायत खुशी हुई", "आप अमरीका की बनी हुई बुश्‍शर्ट हैं…", "आप पाकिस्‍तान की बनी हुई माचिस हैं…", "आप संजीवनी हैं…", "आप कोका कोला हैं…", वगैरह-वगैरह।

मैं रहना पाकिस्‍तान ही में चाहता हूँ क्‍योंकि मुझे इसकी मिट्टी का कण-कण प्‍यारा है जो मेरे फेफड़ों में हमेशा के लिए जगह बना चुकी है, लेकिन मैं आपके मुल्‍क में जरूर आऊँगा, इसलिए कि मैं अपना कायाकल्‍प कराना चाहता हूँ। फेफड़े छोड़कर मैं अपने तमाम बाकी के अंग आपके माहिरों के सुपुर्द कर दूँगा और उनसे कहूँगा कि वह उन्हें अमरीकी नमूने का बना दें।

मुझे अमरीकी चाल-ढाल बहुत पसंद है, इसलिए कि चाल, ढाल का काम देती है और ढाल, चाल का। आपकी बुश्‍शर्ट का नया डिजाइन भी मुझे बहुत भाता है। डिजाइन का डिजाइन और इश्तिहार का इश्तिहार-हर रोज यहाँ आपके दफ्तर में गए, मतलब की यानी प्रोपेगंडे की चीजें बुशर्ट पर छपवाईं और इधर-उधर घूमते फिरे। कभी 'शीजीन' में जा बैठे, कभी कॉफी हाऊस में और कभी चाइनीज लंच होम में।

फिर मैं एक पैकार्ड चाहता हूँ ताकि जब मैं यह बुश्‍शर्ट पहने, मुँह में आपका तोहफे में दिया हुआ पाइप दबाए माल पर से गुजरूँ तो लाहौर के बस तरक्‍कीपसंद और गैर-तरक्‍कीपसंद अदीबों को महसूस हो कि वह सारा वक्त भाड़ ही झोंकते रहे हैं - लेकिन देखिए चचाजान, इसके पेट्रोल का बंदोबस्‍त आप ही को करना पड़ेगा। वैसे मैं आपसे वादा करता हूँ कि पैकार्ड मिलते ही मैं एक कहानी लिखूँगा, जिसका उनवान होगा : 'ईरान का नौ मन तेल और राधा।' यकीन मानिए, इस कहानी के छपते ही ईरान के तेल का सारा टंटा ही खत्‍म हो जाएगा और मौलाना जफर अली खाँ को, जो अभी तक जीवित हैं, अपने इस शेर में मुनासिब संशोधन करना पड़ेगा :

वाय नाकामी कि चश्‍मे तेल के सूखे तमाम
    ले के लायड जार्ज जब भागे कनस्‍तर टीन का

एक छोटा-सा, नन्‍हा-मुन्‍ना एटम बम तो मैं आपसे जरूर लूँगा। मेरे दिल में अर्से से यह ख्वाहिश दबी पड़ी है कि मैं अपनी जिंदगी में एक नेक काम करूँ - आप पूछेंगे : 'यह नेक काम क्‍या है?' आपने तो खैर कई नेक काम किए हैं और लगातार किए जा रहे हैं - आपने हीरोशिमा को तबाह और बिल्‍कुल बर्बाद कर दिया और नागासाकी को धुएँ और गर्दो-गुबार में बदल कर रख दिया और इसके साथ-साथ आपने जापान में लाखों अमरीकी बच्‍चे पैदा किए - फिक्र हर कस बकदरे हिम्‍मते-ओस्‍त- मैं एक ड्राइक्‍लीन करनेवाले को मारना चाहता हूँ - हमारे यहाँ बाज मौलवी किस्‍म के हजरात पेशाब करते हैं तो ढेला लगाते हैं - मगर आप क्‍या समझेंगे - बहरहाल मामला कुछ यूँ होता है कि पेशाब करने के बाद वह सफाई की खातिर कोई ढेला उठाते हैं और शलवार के अंदर हाथ डालकर सारे-बाजार ड्राइक्‍लीन करते चलते-फिरते हैं - मैं बस यह चाहता हूँ कि यूँही मुझे कोई ऐसा आदमी नजर आए, जेब से आपका दिया हुआ मिनी एटम बम निकालूँ और उस पर दे मारूँ ताकि वह ढेले समेत धुआँ बनकर उड़ जाए।

हमारे साथ फौजी सहायता का समझौता बड़ी मा़र्के की चीज है। इस पर कायम रहिएगा। उधर हिंदुस्‍तान के साथ भी ऐसा ही रिश्‍ता मजबूत कर लीजिए। दोनों को पुराने हथियार भेजिए, क्‍योंकि अब तो आपने वह तमाम हथियार कंडम कर दिए होंगे जो आपने पिछली जंग में इस्‍तेमाल किए थे। आपका यह कंडम और फालतू अस्‍त्र शस्‍त्र भी ठिकाने लग जाएगा और आपके कारखाने भी बेकार नहीं रहेंगे। पंडित जवाहरलाल नेहरू कश्‍मीरी हैं। उनको तोहफे के तौर पर एक ऐसी बंदूक जरूर भेजिएगा जो धूप में रखने से ही ठुस कर जाए। कश्‍मीरी मैं भी हूँ, मगर मुसलमान। मैंने अपने लिए आपसे नन्‍हा-मुन्‍ना एटम बम माँगा है।

एक बात और - यहाँ कानून बनने ही में नहीं आता। खुदा के लिए आप वहाँ से कोई माहिर जल्‍द-से-जल्‍द रवाना कीजिए। कौम बगैर 'तराने' (राष्‍ट्रीयगान) के तो चल सकती है, लेकिन किसी दस्‍तूर के बगैर नहीं चल सकती - आप चाहें तो बाबा चल भी सकती है : जो चाहें, आपके अनोखेपन का जादू कुछ भी कर सकता है।

एक और बात - यह खत मिलते ही अमरीकी माचिसों का एक जहाज रवाना कर दीजिए। यहाँ जो माचिस बनी हैं, उसको जलाने के लिए ईरानी माचिस खरीदनी पड़ती है, जो आधी खत्‍म होने के बाद बेकार हो जाती है और जिसकी बची हुई तीलियाँ जलाने के लिए रूसी माचिस लेनी पड़ती है, जो पटाखे ज्यादा छोड़ती है और जलती कम है।

अमरीकी गरम कोट बहुत खूब हैं। लुंडा बाजार इनके बगैर बिलकुल लुंडा था। मगर आप पतलूनें क्‍यों नहीं भेजते? क्‍या आप पतलूनें नहीं उतारते? हो सकता है कि हिंदुस्‍तान रवाना कर देते हों - आप बड़े काइयाँ हैं। जरूर कोई बात है - इधर कोट भेजते हैं, उधर पतलूनें। जब लड़ाई होगी तो आपके कोट और आप ही की पतलूनें, आप ही के भेजे हुए हथियारों से लड़ेंगे।

यह मैं क्‍या सुन रहा हूँ कि चार्ली चेपलिन अमरीकी नागरिकता के अधिकार से निरस्‍त हो गया है। उस मसखरे को क्‍या सूझी। जरूर उसको कम्‍युनिज्‍म हो गया है, वर्ना वह सारी उम्र आपके मुल्‍क में रहा, वहीं उसने नाम कमाया, वहीं उसने दौलत हासिल की। क्‍या उसे वह वक्‍त याद नहीं रहा, जब वह लंदन के गली-कूचों में भीख माँगा करता था और कोई उसे पूछता तक नहीं था - रूस चला जाता, लेकिन वहाँ मसखरों की क्‍या कमी है - चलो इंगलिस्‍तान ही में रहे और कुछ नहीं तो वहाँ के रहने वालों को अमरीकनों का सा खुल कर हँसना तो आएगा और वह जो हर वक्‍त उनके चेहरों पर संजीदगी का गिलाफ चढ़ा रहता है, कुछ तो अपनी जगह से हटेगा।

अच्‍छा, अब मैं खत बंद करता हूँ।
    हैडी ला मार को फ्री स्‍टाइल का एक चुम्‍मा।

खाकसार

सआदत हसन मंटो

15 मार्च, 1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड लाहौर



चौ‍था खत


चचाजान,

आदाबो-नियाज।

अभी कुछ दिन हुए, मैंने आपकी खिदमत में एक निवेदन खत भेजा था। अब यह नया लिख रहा हूँ बात यह है कि जैसे-जैसे आपकी पाकिस्‍तान को फौजी सहायता देने की बात पक्‍की हो रही है, मेरी अकीदत और आपके प्रति सआदतमंदी बढ़ रही है - मेरा जी चाहता है कि आपको हर रोज लिखा करूँ।

हिंदुस्‍तान लाख टापा करे, आप पाकिस्‍तान से फौजी सहायता का समझौता जरूर करें इसलिए कि आपको इस दुनिया की सबसे बड़ी इस्‍लामी सल्‍तनत को मजबूत करने की बहुत ज्यादा फिक्र है, और क्‍यों न हो, इसलिए कि यहाँ का मुल्‍ला रूस के कम्‍युनिज्‍म का बेहतरीन तोड़ है।

फौजी सहायता का सिलसिला शुरू हो जाए तो आप सबसे पहले उन मुल्‍लाओं की सजावट कीजिएगा। उनके लिए खालिस अमरीकी ढेले, खालिस अमरीकी जपमालाएँ (तस्बीह) और खालिस अमरीकी नमाज पढ़ने वाली चटाइयाँ रवाना कीजिएगा। उस्‍तरों और कैंचियों को भी लिस्‍ट में जरूर रखिएगा। खालिस अमरीकी खिजाबे-लाजवाब का नुस्खा भी अगर आपने उनको भेंट कर दिया तो समझिए पौबारह हैं, फौजी सहायता का उद्देश्‍य, जहाँ तक मैं समझता हूँ, इन मुल्‍लाओं की सजावट करना है - मैं आपका पाकिस्‍तानी भतीजा हूँ, आपकी आँख का इशारा समझता हूँ - अक्ल की यह भेंट भी आप ही की सियासी चाल है। खुदा इसे बुरी नजर से बचाए।

मुल्‍लाओं का यह फिरका अमरीकी स्‍टाइल से सज-धज गया तो सोवियत रूस को यहाँ से अपना पानदान उठाना ही पड़ेगा, जिसकी कुल्लियों तक में कम्‍युनिज्म और सोशलिज्म घुले होते हैं।

जब अमरीकी औजारों से कतरी हुई लबें होंगी, अमरीकी मशीनों से सिले हुए शरअई पाजामें होंगे, अमरीकी मिट्टी के अनटच्‍ड बाई हैंड ढेले होंगे, अमरीकी लकड़ी के स्‍टैंड होंगे जिस पर कुरान रखते हैं और अमरीकी चटाई होंगी, तब आप देखिएगा, चारों तरफ आप ही के नाम की माला जपने वाले मिलेंगे।

यहाँ के निचले और निचले दरमियानी तब‍के को ऊपर उठाने की कोशिश तो, जाहिर है, आप खूब करेंगे - भर्ती इन्‍हीं दो तबकों से शुरू होगी। दफ्तरों में चपड़ासी और क्‍लर्क भी यहीं से चुने जाएँगे। तनख्वाहें अमरीकी स्‍केल की होंगी - जब इनकी पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी और सर कड़ाहे में, तो कम्‍युनिज्म का भूत दुम दबाकर भाग जाएगा।

भर्ती का, या कोई भी सिलसिला शुरू हो, मुझे कोई एतिराज नहीं। लेकिन आपका कोई सिपाही इधर नहीं आना चाहिए - मैं यह हरगिज नहीं देख सकता कि हमारी पाकिस्‍तानी लड़कियाँ अपने जवानों को छोड़कर आपके सिपाहियों के साथ चहकती फिरें।

इसमें कोई शक नहीं कि आप यहाँ खूबसूरत और सेहतमंद अमरीकी सिपाही भेजेंगे, लेकिन मैं आपको बताए देता हूँ कि हमारा ऊपर का तबका तो हर किस्‍म की बेगैरती कुबूल कर सकता है कि वह पहले ही अपनी आँखें आपकी लांड्रियों में धुलवा चुका है, मगर यहाँ का निचला और निचला दरमियानी तबका ऐसी कोई चीज कुबूल नहीं करेगा।

अलबत्ता आप वहाँ से अमरीकी लड़कियाँ रवाना कर सकते हैं, जो हमारे जवानों की मरहम-पट्टी करें, उनको डांस करना सिखाएँ, उनको खुल्‍लमखुल्‍ला चुम्‍मे लेने की शिक्षा दें, उनकी झेंप दूर करें - इसमें आप ही का फायदा है।

आप अपनी एक फिल्‍म 'बेदिंग ब्‍यूटी' में अपनी सैकड़ों लड़कियों की नंगी और गोल टाँगे दिखा सकते हैं - हमारे यहाँ भी ऐसी टाँगें भेज दीजिए ताकि हम भी अपने इकलौते फिल्‍म स्‍टूडियो 'शाह नूर' में एक ऐसी ही फिल्‍म बनाएँ और, 'अपवा' वालों को दिखाएँ कि उन्हें कुछ खुशी हो।

हाँ, हमारे यहाँ 'अपवा' एक अजीबो-गरीब चीज बनी हुई है, जो बड़े आदमियों की बड़ी बहू-बेटियों के शौक का दिलचस्‍प नतीजा है। यह 'अल पाकिस्‍तान वूमेंस एसोशिएशन' का संक्षिप्‍त नाम है। इसमें और ज्यादा छोटा करने की गुंजाइश नहीं - कोशिश जरूर हो रही है जो आपको उन छोटे-छोटे ब्‍लाउजों में नजर आ सकती है, जिनमें से उनके पहनने वालियों के पेट बाहर झाँकते नजर आते हैं, अभी शुरुआत है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि यह ब्‍लाउज आमतौर पर चालीस बरस से ऊपर की औरतें इस्‍तेमाल करती हैं, जिनके पेट कई बार कलबूत चढ़ चुके होते हैं - चचाजान, मैं औरत के पेट पर, चाहे वह अमरीकी हो या पाकिस्‍तानी, और सब कुछ देख सकता हूँ, मगर उस पर झुर्रियाँ नहीं देख सकता।

'अपवा' वालियाँ छोटे-छोटे लिबास के बारे में हर वक्‍त सोचने के लिए तैयार हैं, बशर्ते कि उन्हें कोई आजमाए हुए नुस्खे बताए - आपके यहाँ पैंसठ-पैंसठ बरस की बुड्ढियाँ अपने पेट दिखाती हैं, मगर उन पर, मजाल है, जो एक भी झुर्री नजर आ जाए। मालूम नहीं, वह बच्‍चे मुँह से पैदा करती हैं या उन्हें कोई ऐसा गुर मालूम है कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

बहरहाल अगर आपको यहाँ छोटे कटे हुए लिबास चाहिए तो हालीवुड के कुछ एक माहिरीन यहाँ भेज दीजिए - आपके यहाँ प्‍लास्टिक सर्जरी का फन तरक्‍की पर है। फिलहाल ऐसे आधा दर्जन सर्जन यहाँ भेज दीजिए, जो हमारी बुड्ढियों को लाल लगाम के काबिल बना दें।

और सुनिए - तुकांत शाइरी का जमाना था तो हमारे यहाँ माशूक की कमर ही नहीं थी। अब तुकांत शाइरी का दौर नहीं रहा, मगर यह ऐसा उलटा पड़ा है कि अब माशूक की गायब कमर कुछ इस तरह पैदा हुई है कि उसे देखो तो सारा माशूक उसके पीछे गायब नजर आता है। पहले यह हैरत होती थी कि वह कमर बंद कहाँ बाँधती है अब यह हैरत होती है कि वह किस पेड़ का तना है जिसके गिर्द गरीब कमरबंद को बाँधने की कोशिश की गई है - आप मेहरबानी करके खुद यहाँ तशरीफ लाएँ और फौजी समझौता करने से पहले इस बात का फैसला करें कि यहाँ माशूक की कमर होनी चाहिए या नहीं, इसलिए कि फौजी नजरिए से यह बात बहुत अहमियत रखती है।

एक बात और - आपके फिल्‍मसाज हिंदुस्‍तानी फिल्‍मइंडस्‍ट्री में बहुत दिलचस्‍पी ले रहे हैं। यह हम बर्दाश्‍त नहीं कर सकते - पिछले दिनों ग्रेगरी पैक हिंदुस्‍तान पहुँचा हुआ था। उसने फिल्‍म स्‍टार सुरैया के साथ तसवीर खिंचवाई और उसके हुस्‍न की तारीफ में जमीन-आसमान कुलावे मिला दिए। पिछले दिनों सुना था कि एक अमरीकी फिल्‍म प्रोड्यूसर ने नरगिस के गले में बाजू डालकर उसका चुम्‍मा भी लिया था - यह कितनी बड़ी ज्यादती है। हमारे पाकिस्‍तान की एक्‍ट्रेसें मर गई हैं क्‍या?

गुलशन आरा मौजूद है। यह अलग बात है कि उसका रंग तवे जैसा काला है और लोग उसे देखकर यह कहते हैं कि गुलशन पर आरा चला हुआ है लेकिन है तो एक्‍ट्रेस ही। कई फिल्‍मों की हीरोइन है और अपने पहलू में दिल भी रखती है। सवीहा है। यह अलग बात है कि उसकी एक आँख थोड़ी-सी भैंगी है मगर आपके जरा-से ध्‍यान देने से ठीक हो सकती है।

यह भी सुना है कि आप हिंदुस्‍तानी फिल्‍म प्रोड्यूसरों को आर्थिक सहायता भी दे रहे हैं - चचाजान, यह क्‍या दोगलापन है। यानी जो भी लल्‍लू-पंजू आता है, उसको आप मदद देना शुरू कर देते हैं।

आपका ग्रेगरी पैक जाए जहन्‍नम में - माफ कीजिए, मुझे गुस्‍सा आ गया है - आप अपनी दो-तीन एक्‍ट्रेसें यहाँ भेज दीजिए, इसलिए कि हमारा इकलौता हीरो संतोष कुमार बहुत उदास है। पिछले दिनों वह कराची गया था तो उसने कोकाकोला की सौ बोतलें पीकर रीटा हैवर्थ को ख्वाब में एक हजार बार देखा।

मुझे लिपस्टिक के बारे में आपसे कुछ कहना है - वह जो किसप्रूफ लिपस्टिक आपने भेजी थी, हमारे ऊँचे तबके में बिलकुल पसंद नहीं की गई। लड़कियों और बुड्ढियों का कहना है कि यह केवल नाम ही की किसप्रूफ है, लेकिन मैं समझता हूँ कि उनका किसिंग का तरीका ही गलत है। मैंने देखा है लोगों को यह शौक फरमाते हुए। ऐसा मालूम होता है कि तरबूज की फाँक खा रहे हैं - आपके यहाँ एक किताब छपी थी, जिसका टाइटल 'बोसा लेने का फन' था, मगर माफ कीजिए, किताब पढ़कर आदमी कुछ भी नहीं सीख सकता। आप वहाँ से जल्‍दी हवाई जहाज द्वारा एक अमरीकी खातून भेज दीजिए जो हमारे ऊँचे तबके को तरबूज खाने और चुम्‍मा लेने में फर्क समझाए, सही और अच्‍छे तरीके सुझाए। निचले और निचले तबके को यह फर्क बताने की कोई जरूरत नहीं, इसलिए कि वह इन तौर तरीकों से हमेशा बेखबर रहा है और हमेशा बेदिल रहेगा।

आपको यह सुनकर खुशी होगी कि मेरी पाचन शक्ति अब किसी हद तक आपके अमरीकी गेहूँ की आदी हो गई है। अब आपकी गेहूँ को हमारे यहाँ की आवोहवा रास आनी शुरू हो गई है, क्‍योंकि अब इसके आटे ने पाकिस्‍तानी स्‍टाइल की रोटियों और चपातियों की शक्‍ल अपनाने का इरादा कर लिया है - मेरा खयाल है, कि खैरअंदेशी के तौर पर आप यहाँ के गेहूँ का बीज अपने यहाँ मँगवा लें। आपी मिट्टी बड़ी उपजाऊ है। इस मेल-जोल से जो अमरीकी-पाकिस्‍तानी गेहूँ पैदा होगा, बड़ी खूबियों से भरा हुआ होगा। हो सकता है, कोई नया आदम पैदा हो जाए जिस‍की औलाद हम और आपसे बिल्‍कुल अलग हो।

मैं आपसे एक राज की बात पूछता हूँ - पिछले दिनों मैंने यह खबर पढ़ी थी कि नई दिल्‍ली में भारत की देवियाँ रात को अपने बालों में छोटे-छोटे कुमकुमे लगाकर घूमती हैं जो बैटरी से रौशन होते हैं। खबर में यह भी लिखा था कि बाज देवियाँ अपने ब्‍लाउजों के अंदर भी ऐसे ही कुमकुमे लगाती हैं ताकि उनका अंदर-बाहर रौशन रहे - यह फसल कहीं आप ही की तो भेजी हुई नहीं थी? अगर थी तो चचाजान, सुब्‍हानल्‍लाह - मेरा खयाल है, अब आप उन्हें कोई पाउडर तैयार करके भेजें, जिसके खाने से उनका सारा बदन रौशन हो जाया करे और कपड़ों से बाहर निकल-निकल कर इशारे किया करे।

पंडित जवाहरलाल नेहरू पुराने खयालात के आदमी हैं। वह उस बापू के शागिर्द हैं, जिसने नौजवानों को यह हुक्‍म दिया था कि वह अपनी आँखों पर ऐसा शेड या हुड इस्‍तेमाल किया करें जो उन्हें आँख मटक्‍के से रोका करे। पिछले दिनों उन्‍होंने अपनी देवियों को उपदेश किया था कि वह अपने अंगों का खयाल रखा करें और मैकअप वगैरा से परहेज किया करें, मगर उनकी कौन सुनेगा - अलबत्ता हालीवुड की आवाज सुनने के लिए यह देवियाँ हर वक्‍त तैयार हैं - आप पाऊडर वहाँ जरूर रवाना करें। पंडित जी का रद्देअमल काफी पुरलुत्फ होगा।

मैं इस लिफाफे में आपको एक तसवीर भेज रहा हूँ। यह एक पाकिस्‍तानी खातून की है, जिसने बंबई की मछेरनों की चोली जैसा ब्‍लाउज पहना हुआ है। इसमें से उसके पेट का थोड़ा-‍सा निचला हिस्‍सा झाँक रहा है। यह आपकी महिलाओं के नंगे पेटों को एक मात्र पाकिस्‍तानी गुदगुदी पेश करने के इरादे से है।

गैर-कुबूल अजतरफ जहे-अजो-शर्फ

आपका बरखु़र्दार भतीजा

सआदत हसन मंटो

1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड़ लाहौर।

पाँचवाँ खत

मोहतरमी चचाजान,

तस्‍लीमात!

मैं अब तक आपको 'प्‍यारे चचाजान' से खिताब करता रहा हूँ, पर अब की दफा मैंने 'मोहतरमी चचाजान' लिखा है, इसलिए कि मैं नाराज हूँ - नाराजगी का कारण यह है कि आपने मुझे मेरा तोहफा, एटम बम, अभी तक नहीं भेजा है। बताइए, यह भी कोई बात है।

सुना था कि बाप से ज्यादा चचा बच्‍चों से प्‍यार करता है, लेकिन ऐसा मालूम होता है कि आपके अमरीका में ऐसा नहीं होता - मगर वहाँ बहुत-सी ऐसी बातें नहीं होतीं, जो यहाँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर यहाँ आए दिन सरकारें बदलती हैं, जबकि आपके यहाँ ऐसा कोई सिलसिला नहीं होता - यहाँ नबी (अवतार) पैदा होते हैं, वहाँ नहीं होते। यहाँ उनके माननेवाले विदेशमंत्री बनते हैं। इस पर मुल्‍क में हंगामें दंगे-फसाद होते हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं होती इन हंगामों पर जाँच कमीशन बैठता है और उसके ऊपर कोई और बैठ जाता है। वहाँ इस किस्‍म की कोई दिलचस्‍प बात नहीं होती।

चचाजान, मैं आपसे पूछता हूँ, आप अपने यहाँ नबी (अवतार) क्‍यों पैदा नहीं होने देते? खुदा की कसम, एक पैदा कर लीजिए, खयाल बड़ा दिलचस्‍प है। बुढ़ापे में वह आपकी लाठी का काम देगा और इस लाठी से आप अमरीका की सारी भैंसें हाँक सकेंगे-भैंसें तो यकीनन आपके यहाँ जरूर होंगी।

अगर आप नबी (अवतार) पैदा करने में किसी वजह से मजबूर हों तो मुझे हुक्म दीजिए। मैं मिर्जा वशीरुद्दीन महमूद सा‍हब से गुजारिश करूँगा। वह अपना शाहजादा भेज देंगे - जल्‍दी लिखिएगा। ऐसा न हो, आपके दुश्‍मन रूस से माँग आ जाए और आप मुँह देखते रह जाएँ।

बात एटम बम की थी, जो मैंने आपसे तोहफे के तौर पर माँगा था और मैं नबी (अवतार) और उनके बेटों की तरफ चला गया - हाँ, कितनी मामूली बात थी। मैंने सिर्फ एक छोटा, बहुत ही छोटा एटम बम माँगा था, जिससे मैं एक ऐसे आदमी को उड़ा सकता, जो मुझे अपनी घेरेदार शलवार के अंदर हाथ डालकर ढेला लगाता नजर आता है - लेकिन ऐसा मालूम होता है कि आपने मेरी तमन्‍ना की गहराई को महसूस नहीं किया, या शायद आप हाइड्रोजन बमों के अनुभव में व्‍यस्‍त थे।

चचाजान, यह हाइड्रोजन बम क्‍या बला है - आठवीं क्‍लास में हमने पढ़ा था कि हाइड्रोजन एक गैस होती है, हवा से हल्‍की - आप इस दुनिया के ग्‍लोब से किस देश का बोझ हल्‍का करना चाहते हैं - रूस का?

मगर सुना है, वह कमबख्त नाइट्रोजन बम बना रहा है - आठवीं क्‍लास ही में हमने पढ़ा था कि नाइट्रोजन एक गैस होती है, जिसमें आदमी जिंदा नहीं रह सकता - मेरा खयाल है, आप इसके जवाब में ऑक्‍सीजन बम बना दें - आठवीं क्‍लास ही में हमने पढ़ा था कि नाईट्रोजन और आक्‍सीजन गैसें जब आपस में मिलती हैं तो पानी बन जाता है - क्‍या ही मजा आएगा - उधर रूस नाइट्रोजन बम फेंकेगा, इधर आप आक्‍सीजन बम। बाकी दुनिया पानी में डुबकियाँ लगाएगी।

खैर यह तो मजाक की बात थी - सुना है, आपने हाइड्रोजन बम सिर्फ इसलिए बनाया है कि दुनिया में पुरअम्‍न कायम हो जाए - यूँ तो अल्‍लाह ही बेहतर जानता है, लेकिन मुझे आपकी बात पर विश्‍वास है। एक इसलिए कि मैंने आपका गेहूँ खाया है, और फिर मैं आपका भतीजा हूँ बुजुर्गों की बात यूँ भी छोटों को फौरन माननी चाहिए, लेकिन मैं पूछता हूँ, अगर आपने दुनिया में पुरअम्‍न कायम कर लिया तो दुनिया कितनी छोटी हो जाएगी। मेरा मतलब है, कितने मुल्‍कों का वजूद ही बर्बाद हो जाएगा - मेरी भतीजी जो स्‍कूल में पढ़ती है, कल मुझसे दुनिया का नक्शा बनाने को कह रही थी। मैंने उससे कहा : "अभी नहीं… पहले मुझे चचाजान से बात कर लेने दो… उनसे पूछ लूँ, कौन-सा मुल्‍क रहेगा और कौन-सा नहीं रहेगा, फिर तुम्हारे लिए नक्‍शा बना दूँगा।" खुदा के लिए रूस को सबसे पहले उड़ाइएगा - उससे मुझे खुदा वास्‍ते का बैर है।

सात-आठ दिन हुए, रूस के फनकारों का एक ग्रुप आया था। शुभ कामनाएँ बाँट कर, मेरा खयाल है, अब वापस चला गया है। इस ग्रुप में नाचने और गानेवालियाँ थीं, जिन्‍होंने नाच-गाकर हमारे सादा लोह पाकिस्‍तानियों का दिल मोह लिया - अब आप इसके तोड़ में जब तक वहाँ से कोई ऐसा गाता-बजाता, नाचता-थिरकता सद्भावना दल नहीं भेजेंगे, काम नहीं चलेगा।

मैंने आपसे पहले भी कहा था कि हालीवुड की मिलियन डालर टाँगोंवाली लड़कियाँ यहाँ रवाना कर दीजिए, मगर आपने अपने कम अक्ल भतीजे की इस बात पर कोई गौर न किया और हाइड्रोजन बम के अनुभवों में व्‍यस्‍त रहे। किबला, जादू वह है, जो सर चढ़कर बोले।

जरा अपने पाकिस्‍तान के दूतावास से पूछिए - यहाँ हर एक जबान पर तामारा खानम और मादाम आशूरा का नाम है।

यहाँ का एक बहुत बड़ा उर्दू अखबार 'जमींदार' है। इसके एडिटर बड़े जाहिद और खुश्‍क किस्‍म के नौजवान हैं। उन पर इस रूसी दल ने इतना असर किया कि वह प्रोज में शाइरी करने लगे। एक पैरा मुलाहिजा फरमाइए :

'जब वह गा रही थी खचाखच भरे हुए ओपन एयर थिएटर में सामिईन के साँस लेने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। थिएटर पर झुका हुआ तारों भरा आसमान और स्‍टेज के चारों तरफ उभरे हुए सरसब्‍ज दरख्त भी दम-ब-खुद थे और गंभीर सन्‍नाटे में एक कोयल कूक रही थी। उसकी तेज गहरी और रूह को चीर देनेवाली आवाज तारीक रात के सीने में जाबजा अनदेखी रोशनी के गहरे घाव डाल रही थी।'

पढ़ लिया आपने?

चचाजान, यह मामला बहुत संगीन है। हाइड्रोजन बमों को फिलहाल छोड़िए और इस तरफ ध्‍यान दीजिए - आपके पास क्‍या हसीनाओं की कमी है। बुरी नजर ना लगे, एक-से-एक पटाखा-सी मौजूद हैं, लेकिन मैं आपको एक सलाह दूँगा - जितनी भेजिएगा, सबकी टाँगे मिलियन डालर किस्‍म की हों और वह हमारे पाकिस्‍तानी मर्दों को चुम्‍मा देने से न घबराएँ - मैं आपसे वादा करता हूँ कि अगर आपने एक जहाज भर कोलीन्‍स टूथपेस्‍ट भेज दी तो मैं सबके दाँत साफ करा दूँगा। उनके मुँह से बू नहीं आएगी।

आप मेरी बात मान गए तो मैं आपकी सात आजादियों की कसम खाके कहता हूँ कि रूस वालों के छक्‍के छूट जाएँगे और तामारा खानम और मादाम आशूरा टापती रह जाएँगी और 'जमींदार' के एडिटर को दिन में तारे नजर आने लगेंगे। लेकिन चचाजान, एक बात सुन लीजिए। अगर आपने एलिजाबेथ टेलर को भेजा तो उसके चुम्‍मे सिर्फ मेरे लिए रिजर्व होंगे। मुझे उसके होंठ बहुत पसंद है।

हाँ, इस सद्भावी दल में कहीं उस हब्‍शी गवैए पाल राब्‍सन को शामिल न कर लें -कम्‍युनिस्‍ट है साला। मुझे हैरत है, आपने उसे अभी तक र्इस्‍ट अफ्रीका क्‍यों नहीं भेजा! वहाँ उसे बड़ी आसानी से माव टाव की तहरीक में गिरफ्तार करके गोली से उड़ाया जा सकता है।

मैं इस खैरअंदेशी दल का बेचैनी से इंतजार करूँगा और 'नवाए-वक्त' के संपादक से कहूँगा कि वह अभी से इसका प्रोपेगंडा शुरू कर दे। बड़ा नेक और बरखु़र्दार किस्‍म का आदमी है। मेरी बात नहीं टालेगा - वैसे आप उसे तोहफे के तौर पर रीटा हवर्थ की ओटोग्राफ्ड तस्‍वीर भिजवा दीजिएगा। बेचारा इसी में खुश हो जाएगा।

मैं यह भी वादा करता हूँ कि जब आपका यह खैरअंदेशी दल लाहौर में आएगा तो मैं उसे हीरा मंडी की सैर कराऊँगा, शोरिश काश्‍मीरी साहब को मैं साथ ले चलूँगा कि वह इस इलाके के पीर हैं - हाल ही में आपने इस इलाके पर एक किताब भी लिखी है, जिसका उनवान 'उस बाजार में' है - आप अपने दूतावास को हुक्‍म दीजिए कि वह आपको शोरिश काश्‍मीरी साहब की किताब का अनुवाद कराके भेज दे। यहाँ एक-से-एक चमकता हुआ हीरा पड़ा है, हर तराश का और हर वजन का।

अब और बातें शुरू करता हूँ।

पाकिस्‍तान को आपके फौजी इमदाद देने के फैसले और मशरिकी बईद के दूसरे मामलों पर भारत और आपके मतभेदों पर पंडित नेहरू ने पिछले दिनों जो जबर्दस्‍त नुक्‍ताचीनी की थी, सुना है, उसका रद्दे अमल यह हुआ है कि आपके मुल्‍क की कूटनीति में एक नया रुझान पैदा हुआ है। कुछ की राय है कि अमरीका भारत को अपने वायदों के संबंध में तसल्‍ली दिलाने की जरूरत से ज्यादा कोशिश कर रहा है।

आपके दक्षिणी एशियाई और अफ्रीका सैल के बड़े अफसर क्‍या नाम है उनका - हाँ, मिस्‍टर जान जोनीगंज ने अपने एक बयान में भारत के लिए अपने देश के खैरख्वाही वाले खयालात का इजहार किया है। इसका तो यह मतलब निकलता है कि वाशिंगटन अब नई दिल्‍ली का एतिमाद हासिल करने के लिए तड़प रहा है।

जहाँ तक मैं समझा हूँ, पाकिस्‍तान और भारत को खु़श रखने से आपका सिर्फ और सिर्फ एक उद्देश्‍य यही है कि जहाँ कहीं भी आजादी और लोकतंत्र का टिमटिमाता दीया जल रहा है, उसे फूँक से न बुझाया जाए बल्कि उसको, तेल में डुबो दिया जाए ताकि वह फिर कभी अपनी प्‍यास की शिकायत न करें, है ना चचाजान!

आप पाकिस्‍तान को आजाद देखना चाहते हैं इसलिए कि आपको दर्रा-ए-खैबर से बे-हद प्‍यार है, जहाँ से हमलाआवर सदियों से हम पर हमला करते रहे हैं। असल में दर्रा-ए-खैबर है भी बहुत खूबसूरत चीज। इससे प्‍यारी और खूबसूरत चीज पाकिस्‍तान के पास और है भी क्‍या?

और भारत को आप इसलिए आजाद देखना चाहते हैं कि पोलैंड, चेकोस्‍लोवाकिया और कोरिया में रूस की हानिकारक कार्रवाइयाँ देखकर आपको हर दम इस बात का खटका रहता है कि यह मुल्‍क कहीं भारत में भी दरांतियाँ और हथौड़े चलाना शुरू न कर दे - जाहिर है कि भारत की आजादी खुदा ना ख्वास्‍ता छिन गई तो कितनी बड़ी आफत होगी। इसके महज खयाल से ही आप काँप उठते होंगे।

आपकी तारोंवाली ऊँची टोपी की कसम, आप-जैसा शरीफ इंसान कभी पैदा हुआ है और न होगा - खुदा आपकी उम्र दराज करे और आपकी सात आजादियों को दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की दे।

यहाँ एक इलाका है पश्चिमी पंजाब। इसके वजीरेआला हैं फीरोज खाँ नून - उनकी बेगम एक अंग्रेज खातून हैं। हाल ही में आपने अपने आलीशान बँगले पर जो पंचौली फिल्‍म स्‍टूडियो के आगे है, एक कॉन्‍फ्रेंस बुलाई। इसमें आपने मुस्लिम लीग के, जिसे मशरिकी पाकिस्‍तान में हार हुई है, कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि वह अपने-अपने इलाकों में कम्‍युनिस्‍टों के मुकाबले के लिए संघर्ष करें।

देखिए चचाजान, आप फौरन खाँ नून साहब का शुक्रिया अदा कीजिए और सद्भावना के तौर पर उनकी बेगम साहिबा के लिए हालीवुड के सिले हुए दो-तीन हजार फ्राक भेल दीजिए - कहीं आपने भेज तो नहीं दिए? मैं भूल गया था, क्‍योंकि अब वह साड़ी पहनती हैं।

बहरहाल नून साहब का कम्‍युनिस्‍टों का दुश्‍मन होना बड़ा नेक शगुन है, क्‍योंकि कामरेड फीरोजउद्दीन मनसूर फिर जेल में होगा। मुझे उसका हर वक्त दमे के मर्ज में गिरफ्तार रहना एक आँख नहीं भाता।

अब मैं आपको एक बड़ी अच्‍छी सलाह देता हूँ - हमारी हुकूमत ने हाल ही में कामरेड सिब्‍ते हसन को जेल से रिहा किया है। आप उसको अगवा करके ले जाइए। मेरा दोस्‍त है, लेकिन मुझे डर लगता है कि वह अपनी प्‍यारी-प्‍यारी नर्म-नर्म बातों से एक रोज मुझे जरूर कम्‍युनिस्‍ट बना लेगा - मैं इतना डरपोक भी नहीं कि कम्‍युनिस्‍ट हो जाने पर मेरा कुछ बिगड़ जाएगा, मगर मैं नहीं चाहता कि आपकी इज्जत पर कोई हर्फ आए। लोग क्‍या कहेंगे! आपका भतीजा और ऐसे बुरे दलदल में जा धँसा - मेरी इस बरखु़र्दारी पर एक शाबाशी तो भेजिए।

अब मैं रोजगार के सूरतेहाल की तरफ आता हूँ - चचाजान, आपकी रीश मुबारक की कसम, दिन बहुत बुरे गुजर रहे हैं। इतने बुरे गुजर रहे हैं कि अच्‍छे दिनों के लिए दुआ माँगना भी भूल गया हूँ। यह समझिए कि बदन पर लत्ते झूलने का जमाना आ गया है। कपड़ा इतना महँगा हो गया है कि जो गरीब हैं, उनको मरने पर कफन भी नहीं मिला और जो जिंदा हैं, वह तार-तार लिबास में नजर आते हैं - मैंने तो तंग आकर सोचा है कि एक 'नंगा क्‍लब' खोल दूँ, लेकिन सोचता हूँ नंगे खाएँगे क्‍या - एक-दूसरे का नंग? और वह भी इतना बदशक्ल होगा कि निवाला उठाते ही वहीं रख देंगे।

कोई वीरानी-सी-वीरानी है, कोई नंगी-सी नंगी है, कोई खट्टी-सी-खट्टी है, लेकिन चचाजान, दाद दीजिए :

गो मैं रहा रहीने सितम हाय रोजगार
    लेकिन तेरे खयाल से गाफिल न रहा

लेकिन छोड़िए इस किस्‍से को - आप खूबसूरत और सुंदर चाल वाली हसीनों का वह खैरअंदेशी दल भेज दीजिए। हम इस गुर्बत में भी अपना जी दिल बहला लेंगे। (पशौरी कर लेंगे)

फिलहाल आप एलिजाबेथ टेलर के होंठों का एक प्रिंट भेज दीजिए। खुदा आपको खुश रखे।

आपका ताबेदार भतीजा

सआदत हसन मंटो

1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड लाहौर।

सातवाँ खत

चचाजान,

आदाओ-तस्‍लीमात।

माफ कीजिएगा, मैं इस वक्त अजीब उलझन में फँसा हुआ हूँ। मेरे पिछले खत की रसीद मुझे अभी तक नहीं मिली। क्‍या वजह है?

वह मेरा छटा खत था और मैंने उसे अहमद राही के हाथों पोस्‍ट करवाया था - डर है, गहीं गुम न हो गया हो!

यह दुरुस्त है कि हमारे यहाँ कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अगर लाहौर से शेखूपुरा कोई खत भेजा जाए तो ढाई-तीन साल के अर्से में पहुँचता है और यह महज छेड़ खूबाँ से चली जाए असद के तौर पर दानिस्‍ता किया जाता है, लेकिन आपके साथ ऐसी दिल्‍लगी का खयाल भी हमारे डाक महकमे को कभी नहीं आ सकता, इसलिए कि वह सबका-सब आपका मुफ्त भेजा हुआ गेहूँ खा चुका है।

जहाँ तक मैं समझता हूँ, सारी कारस्‍तानी रूस की है और इसमें भारत का भी हाथ है - पिछले दिनों लखनऊ में आपके इस बरखु़र्दार भतीजे पर एक सैमिनार हुआ था। उसमें किसी ने कहा था कि मैं आपके अमरीका के लिए अपने पाकिस्‍तान में जमीन समतल कर रहा हूँ।

कितनी टुच्‍ची बात है - कि यह बात सारी दुनिया जानती है कि अभी तक आपने बुलडोजर भेजे नहीं हैं और - मैं भारत के उस कम अक्ल से पूछता हूँ कि मैं अमरीका के लिए पाकिस्‍तान में जमीन किस चीज से समतल कर रहा हूँ? अपने सर से!

मेरी बातें बहुत देर के बाद आपकी समझ में आती हैं सिर्फ इसलिए कि आप हाइड्रोजन बमों के तज्ब्रात में व्‍यस्‍त हैं। आपको दीन का होश है न दुनिया का - किबला, इन बमों को छोड़िए। यह कोई मामूली बात नहीं है कि मेरा छटा खत कम्‍युनिस्‍ट ले उड़े हैं।

मेरे बस में होता तो मैं इन शरारतपसंदों के ऐसे कान ऐंठता कि बिलबिला उठते, मगर मुसीबत यह है कि मैं - अब आपको क्‍या बताऊँ - यहाँ के सारे बड़े-बड़े कम्‍युनिस्‍ट मेरे दोस्‍त हैं। मिसाल के तौर पर अहमद नदीम कासमी, सिब्‍ते हसन, अब्‍दुल्‍ला मलिक -हालाँकि मुझे इससे नफरत है, बड़ा घटिया किस्‍म का कम्‍युनिस्‍ट है फीरोजउद्दीन मनसूर, अहमद राही, हमीद अख्तर, नाजिश काशमीरी और प्रोफेसर सफदर। चचाजान, मैं इन लोगों के सामने चूँ नहीं कर सकता इसलिए कि मैं आए दिन इनसे कर्ज लेता रहता हूँ। आप समझ सकते हैं कि देनदार होने के नाते उनके सामने कुछ बोल नहीं सकता - आपने मुझे कर्ज तो कभी नहीं दिया, अलबत्ता शुरू-शुरू में जब मैंने आपको पहला खत लिखा था तो उससे मुतासिर होकर आपने खैरअंदेशी के तौर पर मुझे तीन सौ रुपए भिजवाए थे। और मैंने आपके इस जज्बे से मुतास्सिर होकर कसम ले ली थी कि उम्र भर आपका साथ दूँगा, मगर आपने मेरे इस जज्बे की दाद न दी और माली दमदाद का सिलसिला बंद कर दिया।

प्‍यारे चचाजान, मुझे बताइए, मुझसे कौन-सा गुनाह हुआ है कि आप मुझे सजा दे रहे हैं - लाहौर में जो आपका दफ्तर है, उसके चपड़ासी भी मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करते। दो-तीन जूनियर अफसर, जो मेरे पाकिस्‍तानी भाई हैं, उनमें आपने कौन से ऐसे सुर्खाब के पर लगा दिए हैं कि वह मेरा नाम सुनते ही मुझे गालियाँ देना शुरू कर देते हैं। आखिर मेरा कुसूर? मैंने अगर बगैर लालच के माना है कि आपने मेरी पैसे से मदद की है तो इसमें आपके मुलाजिमों ने क्‍या बुराई देखी - भारत को आप करोड़ों डालर दे चुके हैं और वह मानता है। मेरे पाकिस्‍तान को आपने मुफ्त गेहूँ भेजा और वह गरीब भी मानता है - कराची में हम लोगों ने ऊँटों का जुलूस निकाला और बाकायदा इश्तिहाराजी की कि आपने हम पर बहुत बड़ा करम किया है। यह जुदा बात है कि आपका भेजा हुआ गेहूँ पचाने के लिए हमें अपने मेदे अमरीका हिमायती बनाने पड़े।

मेरी समझ में नहीं आता कि आप क्‍यों भारत को अरबो डालर कर्ज दे रहे हैं। पाकिस्‍तान को फौजी मदद देने का भी आपने वादा किया है - आप मेरा वजीफा क्‍यों नहीं लगा देते। लोग क्‍या कहेंगे कि पाकिस्‍तान के इतने बड़े कहानीकार को सिर्फ तीन सौ रुपए देकर आपने हाथ रोक लिया। यह मेरा अपमान है और आपका भी। अगर आप वजीफा नहीं देना चाहते तो न दें, पर कर्ज में क्‍या आपत्ति है। मेहरबानी करके जल्‍द से जल्‍द एक लाख डालर मुझे कर्ज दे डालिए ताकि मैं इत्‍मीनान के दो साँस ले सकूँ।

आगा खाँ को तो आप जानते ही होंगे, क्‍योंकि वह भी बहुत बड़ा सरमाएदार है। उसकी हाल ही में प्‍लेटीनम जुबली मनाई गई थी - मेरा जी चाहता है कि मेरी भी एक जुबली हो जाए - आप मेरे प्‍यारे-प्‍यारे, बहुत ही प्‍यारे चचा हैं। आपसे चोचले न बखारूँ तो और किससे - खुदा के लिए मेरी एक जुबली कर डालिए ताकि कब्र में मेरी रूह बेचैन न रहे।

पाकिस्‍तान, मेरा पाकिस्‍तान अपने फनकारों की कदरदानी में लापरवाह नहीं, लेकिन मुसीबत यह है कि मुझसे जो ज्यादा हकदार हैं, उनकी लिस्‍ट बहुत लंबी है - पिछले दिनों मेरी हुकूमत ने खान बहादुर मुहम्‍मद अब्‍दुलरहमान चुगताई के लिए पाँच सौ रुपए माहवार आजीवन वजीफा मुकर्रर किया। खान बहादुर साहब अल्‍लाह के फजल से खूब बड़ी-जायदाद के मालिक हैं, इसलिए वह मुझसे कहीं ज्‍यादा मदद पाने के हकदार थे - इसके बाद खान बहादुर अबुल असर हफीज जालंधरी साहब के लिए भी ताहयात इतना ही वजीफा मंजूर किया गया, इसलिए कि वह भी अमीर हैं।

मेरी बारी खुदा मालूम कब आएगी, इसलिए कि मैं अलाटशुदा मकान में रहता हूँ, जिसका किराया भी मैं अदा नहीं कर सकता।

बहुत से जरूरतमंद और भी साहेबान पड़े हैं। मिसाल के तौर पर मियाँ बशीर अहमद बी.ए., संपादक माहनाम 'हुमायूँ', साबिक सफीर तुर्की, सैयद इम्तियाज अली ताज, मिस्‍टर इकराम, पी.सी. एस. फजल अहमद मरीम फजली, वगैरह-वगैरह - इन सबका नंबर पहले आता है, इसलिए कि इनको किसी वजीफे की जरूरत नहीं। लेकिन मेरी हुकूमत का दिल साफ है। वह खिदमात देखती है, सरमाया और ओहदा नहीं देखती।

वैसे मैंने कौन-सा इतना बड़ा काम किया है जो इन लोगों को छोड़कर मेरी हुकूमत अपना ध्‍यान मेरी तरफ दे और ईमान की बात तो यह है कि मैं सिर्फ इस बलबूते पर कि आपका भतीजा हूँ, आपसे गुजारिश कर रहा हूँ कि मेरी कोई जुबली कर डालिए।

मेरी जिंदगी के दिन बहुत सीमित हैं। आपको दुख तो होगा मगर मैं कहूँ कि मेरे इस हाल के कारण आप खुद हैं। अगर आपको मेरी सेहत का खयाल होता तो आप और कुछ नहीं तो कम-से-कम वहाँ से एलिजाबेथ टेलर ही को मेरे पास भेज देते कि वह मेरी तीमारदारी करती। मालूम नहीं, आप क्‍यों इतनी गफलत बरत रहे हैं। क्‍या आप मेरी मौत चाहते हैं, या कोई और बात है, जिसे आपने रहस्‍य बना के रख छोड़ा है?

मगर यह रहस्‍य अब रहस्‍य नहीं कि मरे देश में कम्‍युनिज्म बड़ी तेजी से फैल रहा है - आपसे क्‍या छुपाऊँ, कई बार तो मेरा भी जी चाहता है कि लाल पंख लगाकर मैं कम्‍युनिस्‍ट बन जाऊँ। अब आप ही बताइए, यह कितनी खतरनाक इच्‍छा है! इसीलिए, मेरे बुजुर्गवार, मैंने आपको यह सलाह दी थी कि रूसियों के सकाफती दल के तोड़ में वहाँ से लुभावन लड़कियों के एक खैरअंदेशी दल रवाना कर दीजिए - सावन के दिन आनेवाले हैं। इस मौसम में हम लोग बड़े रोमांटिक हो जाते हैं। मेरा खयाल है, अगर आपका भेजा हुआ दल इस मौसम में आए तो बहुत अच्‍छा रहेगा। उसका नाम बरसाती प्रतिनिधि दल रख दिया जाएगा।

चचाजान, मैंने एक बड़ी डरावनी खबर सुनी है कि आपके यहाँ तिजारती और सनअत बड़े नाजुक दौर से गुजर रही है। आप तो माशाल्‍लाह अक्लमंद हैं, लेकिन एक बेवकूफ की बात भी सुन लीजिए - यह तिजारती और सनअती खतरा सिर्फ इसलिए पैदा हुआ है कि आपने कोरिया की जंग बंद कर दी है। यह बहुत बड़ी गलती थी। अब आप ही सोचिए कि आपके टैंकों, बम बार हवाई जहाजों, तोपों और बंदूकों की खपत कहाँ होगी?

इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया की आम राय के सख्‍त विरोध के आधार पर आपको जंग बंद करनी पड़ी है, लेकिन दुनिया की आम राय आपके सामने क्‍या हकीकत रखती है। मेरा मतलब है, सारी दुनिया आपके एक हाइड्रोजन बम का मुकाबला कर सकती है - कोरिया की जंग आपने बंद कर दी है। यह बहुत बड़ी गलती थी। खैर इसको छोड़िए, आप हिंदुस्‍तान और पाकिस्‍तान में जंग शुरू करा दीजिए। कोरिया की जंग के फायदे इस जंग के फायदों के सामने फीके न पड़ जाएँ तो मैं आपका भतीजा नहीं।

किबला, जरा सोचिए। यह जंग कितनी फायदेमंद तिजारत होगी। आपके तमाम हथियार बनाने वाले कारखाने डबल शिफ्ट पर काम करने लगेंगे। भारत भी आपसे हथियार खरीदेगा और पाकिस्‍तान भी। आपकी पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी और सिर कड़ाहे में।

वैसे आप हिंद-चीन में जंग जारी रखिए। लोगों को नसीहत करते रहिए कि यह बड़ा नेक काम है - फ्रांसीसी अवाम और फ्रांसीसी हुकूमत जाए जहन्‍नम में। वह इस जंग के खिलाफ हैं तो हुआ करें। हमें कोई परवा नहीं करनी चाहिए। आखिर हमारा मकसद तो दुनिया में अमनोअमान कायम करना है, क्‍यों चचाजान!

मुझे आपके मिस्‍टर डलेस का यह कहना बहुत पसंद आया है कि आजाद दुनिया का उद्देश्‍य कम्‍युनिज्म को शिकस्‍त देना है - यह है हाइड्रोजन बम की पुरअज और आजादाना जबान।

जाहिल लोग यह कहते हैं के पश्चिमी एकता का उद्देश्‍य दूसरी कौमों के दरमियान मतभेद को ताकत के बगैर हल करना चाहिए - मैं पूछता हूँ ताकत के बगैर कोई मतभेद आज तक हल हुए है - आजकल तो सारी दुनिया मतभेदों से भरी पड़ी है और इसका हल इसके सिवाय और क्‍या हो सकता है कि दुनिया को मुकम्‍मल तबाही की तस्‍वीर दिखाई जाए और उससे कहा जाए : "तुम सब अपने घुटने टेक दो।"

बरतानिया के मिस्‍टर बेवन का मुँह आप क्‍यों बंद नहीं करते। आपकी बिल्‍ली और आप ही से म्‍याऊँ। गधा कहीं का आपके खिलाफ जहर उगल रहा है। आपके मिस्‍टर डलेस के बारे में कहता है कि वह नए खयालात से वंचित है और दुनिया को हाईड्रोजन बम से डरा-धमकाकर अपना उल्‍लू सीधा करते हैं - उल्‍लू कहीं का।

चचाजान, मुझे बड़ा गुस्‍सा आता है, जब बरतानिया का कोई मसखरा आपके खिलाफ ऊल-जलूल बकता है - मेरी मानिए, टापू बरतानिया ही को बिलकुल तबाह करके हमेशा की नींद सुला दीजिए। बहादुर लोगों के लिए यह टापू हमेशा सिर-दर्द बने रहे हैं। अगर आप इनको उड़ाना नहीं चाहते तो वह बीस मील लंबी खाई पाट दीजिए जो बरतानिया को पूरी तरह यूरोप से जुदा कर देती है। अल्‍लाह बख्शे, नेपोलियन बोनापार्ट और हर हिटलर को इससे बड़ी चिढ़ थी। अगर यह न होती तो आज मिस्‍टर बेवन भी न होते और बहुत मुमकिन है, आप भी खु़दा को प्‍यारे हो गए होते जो परेशानियाँ अब आपको उठानी पड़ रही हैं, उनसे आपको निश्चित रूप से छुटकारा मिल गया होता।

मैं आपसे सच कहता हूँ, आगे चलकर आपको यह बरतानिया बहुत तंग करेगा। 'मैं तो कंबल को छोड़ता हूँ, कंबल ही मुझे नहीं छोड़ता' वाला मामला हो जाएगा - पिछली जंग में जर्मनी ने इटली को अपने साथ मिलाया, गरीब मुसीबत में गिरफ्तार हो गया और लेने-के-देने पड़ गए - आप इस चक्‍कर में न पड़िएगा। बस अपने उसी पुराने उसूल पर कायम रहिए : "कैश एंड कैरी।"

नदी व नहरों के जाल से लेस ब्रिटेन को पुर करके योरोप से मिलाने का मनसूबा आप यह खत मिलते ही बना लें। मेरा खयाल है, आपके इंजीनियर एक महीने के अंदर-अंदर इस काम को जिम्‍मेदारी से पूरा कर लेंगे।

मैंने असल में यह खत आपको इसलिए लिखा था कि आप मेरी कोई जुबली मनाएँ, क्‍योंकि मुझे इसका बड़ा शौक है।

मुझे लिखते हुए पच्‍चीस बरस होने को आए हैं - मैं चोंचला ही सही, लेकिन मेरी आपसे अर्ज है और मैं गिड़गिड़ाकर कहता हूँ कि और कुछ नहीं तो मेरी एक जुबली मना डालिए।

चूँकि मेरा पेशा लिखना है, इस संबंध से इस जुबली का नाम 'मंटो-पारकर जुबली' होना चाहिए। बस आप मुझे 'पारकर फिफ्टीन' कलमों से तुलवा दीजिए - तराजू मैं अहसान बिन दानिश की टाल से ले आऊँगा।

मालूम नहीं, एक कलम का वजन कितना होता है - मेरा वजन इस वक्त एक मन ढाई सेर है, लेकिन जुबली के रोज तक यह घटते-घटते एक मन, रह जाएगा - अगर आपने देर कर दी तो मुझे बड़ी निराशा का सामना करना पड़ेगा, इसलिए कि मेरा वजन घटते-घटते सिफर रह जाएगा।

आप हिसाब लगा लीजिए कि एक मन में 'पारकर फिफ्टीवन' कलम कितने चढ़ते हैं, लेकिन खु़दा के लिए जल्‍दी कीजिए।

यहाँ सब खैरियत है - मौलाना भाशानी और मिस्‍टर सहरवर्दी माशाल्‍लाह दिन-ब-दिन तगड़े हो रहे हैं। आपसे कुछ नाराज मालूम होते हैं - मौलाना को आप एक अदद खालिस अमरीकी तस्बीह और मिस्‍टर सहरवर्दी को एक अदद खालिस अमरीकी कैमरा रवाना कर दें। उनकी नाराजगी दूर हो जाएगी।

हीरा मंडी की तवाइफें शोरिश कश्‍मीरी के जरिए से मुजरा अर्ज करती हैं।

आपका ताबेफरमान

सआदत हसन मंटो

1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड लाहौर।

आठवाँ खत


चचाजान,

तस्‍लीओ-नियाज।

उम्‍मीद है, आपको मेरा सातवाँ खत मिल गया होगा। उसके जवाब का मुझे इंतजार है।

रूसी सकाफती वफद के तोड़ में कोई ऐसी ही सकाफती और खैरअंदेश दल यहाँ पाकिस्‍तान में भेजने का इरादा कर लिया है क्‍या आपने?

इ‍त्तिला करें ताकि इस तरफ से मुझे तसल्‍ली हो जाए और मैं यहाँ के कम्‍युनिस्‍टों को, जो अभी तक रूसी दल की शानदार कामयाबी पर बिगुलें बजा रहे हैं, यह खबर सुनाकर ठंडा कर दूँ कि मेरे चचाजान रूसी दल से भी कहीं बढ़कर ऐसा दल भेज रहे हैं, जिसमें मिलियन डालर टाँगों और बिलियन डालर जोबनोंवाली लड़कियाँ शामिल होंगी और जिनकी एक झलक देखकर ही उनकी राल टपकने लगेगी।

आपको यह सुनकर खुशी होगी कि हमारे सूबे के वजीरेआला जनाब फीरोज खाँ नून साहब मैदाने-अमल में कूद पड़े हैं। आपने पिछले दिनों धीमें आवाज में सिर्फ इतना कहा था : "हमें कम्‍युनिस्‍टों के षड्यंत्रों को दबाने की कोशिश करनी चाहिए…" मुबारक हो कि दाबने दबाने का यह काम शुरू हो चुका है। बिसमिल्‍लाह, मैं यह खत इसी खुशी में लिख रहा हूँ कि कम्‍युनिस्‍टों के दफ्तर पर पुलिस के छापे पड़े हैं।

हमारे आखबार कहते हैं कि बहुत जल्‍द कम्‍युनिस्‍टों की भरमार शुरू हो जाएगी -पुलिस ने गिरफ्तार किए जानेवालों की लिस्‍ट तैयार कर ली है। अल्‍लाह ने चाहा तो बहुत जल्‍द यह शरारती तत्‍व जेलों में ठूँस दिए जाएँगे - सबसे पहले अगर कामरेड फीरोजुद्दीन मनसूर को कैद किया गया तो मुझे बड़ी राहत होगी। उसको दमे की शिकायत है। मैंने सुना है कि जिसको यह मर्ज हो, वह मरने का कभी नाम ही नहीं लेता। यह मर्ज की अगर ज्यादती है तो कामरेड मनसूर की भी ज्यादती है। मेरा ख्याल है कि अगर अब उसे जेल में डाला गया तो वह जरूर मर जाएगा। खस-कम-जहाँ-पाक।

अहमद नदीम कासमी भी यकीनन कैद हो जाएगा। कियाँ इफ्तिखरुद्दीन ने उसको अपने अखबार 'इमरोज' का एडिटर बनाकर बहुत बड़ा जुर्म किया है। चाहिए तो यह कि मियाँ साहब गिरफ्तार किए जाएँ, मगर वह बड़े होशियार हैं। पुलिस हथकड़ियाँ लेकर उनकी कोठी पहुँचेगी तो वह मुस्‍कराकर बाहर निकलेंगे और स्‍टे आर्डर दिखा देंगे। पिछले दिनों 'अमरोज' और 'पाकिस्‍तान टाइम्‍स' के दफ्तरों का किराया ना अदा करने के कारण ताले लगने की नौबत आ गई थी कि उन्‍होंने एक स्‍टे आर्डर मदारी की तरह थैले से बाहर निकालकर पुलिस की हैरत भरी आँखों के सामने रख दिया था - हर हाल में अहमद नदीम कासमी भी कुसूरवार है। उसको जरूर सजा मिलनी चाहिए। कमबख्‍त 'पंजदरिया' का कलमी नाम रखकर आपकी तारों भरी टोपी उछालता रहता है - मेरी तो यह राय है कि आप छः अमरीकी लड़कियाँ, कुँवारी, उसकी बहनें बना दें। उसको राह पर लाने का यह नुस्खा बहुत कामयाब रहेगा, उसे बहनें बनाने का शौक है। इस सूरत में उसको जेलखाने में ठूँसने की जरूरत बाकी नहीं रहेगी। जब पाँचों उँगलियाँ घी में और सर कड़ाहे में होगा तो कम्‍युनिज्म उसके दिमाग से ऐसे गायब होगा जैसे गधे के सिर से सींग।

ज्‍यों ही यहाँ कम्‍युनिस्‍टों की गिरफ्तारियाँ शुरू होंगी, मैं आपको इत्तिला कर दूँगा। मेरी बरखुर्दारी और कामयाबियाँ नोट करते जाइएगा - अगर आप अच्‍छे मूड में हों तो मुझे तीन सौ रुपए बतौर कर्ज देना न भूलिएगा। पिछला तीन सौ तो मैंने दो दिन के अंदर-अंदर ही खत्‍म कर डाला था और आपकी यह इनायत करीब-करीब दो बरस पुरानी हो चुकी है।

मैंने अपने छटे खत के संबंध में, जो आप तक नहीं पहुँचा, जाँच पड़ताल की थी। जैसा कि मुझे शक था, यह सब उन बेअक्‍ल कम्‍युनिस्‍टों की शरारत थी - अहमद राही को आप जानते हैं? वही 'तिरंजन' का लेखक, जिसको हमारी हुकूमत ने पाँच सौ रुपया इनाम दिया था उसने पंजाबी जबान में बड़ी प्‍यारी नज्में लिखी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यह नज्में बड़ी प्‍यारी और नर्मो-नाजुक हैं, मगर आप नहीं जानते, यह अहमद राही बड़ा खतरनाक कम्‍युनिस्‍ट हैं। पार्टी ऑफिस में दूसरे मेंबर टूटे प्‍यालों में चाय पीते हैं, मगर यह छुप-छुपकर बीयर पीता है और पी-पाकर मोटा हो रहा है। मेरा दोस्‍त है। मैंने उसी को खत पोस्‍ट करने के लिए दिया था, मगर कम्‍युनिस्‍ट जो ठहरा, मेरा खत गोल कर गया और जाकर पार्टी के हवाले कर दिया - मुझे अभी तक पूरे तौर पर गुस्‍सा नहीं आया है और मेरे पास इतने पैसे भी नहीं है, वर्ना मैंने सोच रखा है कि एक दिन उसको इतनी बीयर पिलाऊँगा कि उसकी तोंद फट जाए - एक दिन कमबख्त मुझसे कहने लगा : "तुम अपने चचा साम को छोड़ दो और मालनकोफ से खतो-किताबत शुरू कर दो… आखिर मालनकोफ तुम्‍हारा मामूँ है…" मैंने कहा : "यह दुरुस्त है, लेकिन वह मेरे सौतेले मामूँ है… उनको मुझसे, या मुझको उनसे कभी मुहब्‍बत नहीं हो सकती। इसके अलावा मैं जानता हूँ कि उनका अपने सगे भानजों से भी कोई अच्‍छा बर्ताव नहीं… वह गरीब उन पर अपनी जान छिड़कते हैं, उनसे बेपनाह अकीदत रखते हैं, फटे-पुराने कपड़ों में अपनी खस्‍ताहालियों के बावजूद उनकी खिदमत करते हैं, और वह सिर्फ एक सूखी शाबाशी वहाँ से लाल मोहर लगाकर रवाना कर देते हैं… अंग्रेज, चचा और अंग्रेज मामूँ इस रूसी मामूँ से लाख दर्जे बेहतर थे। 'सर' 'खान बहादुर' और 'खान साहब' जैसे खिताब देकर टरखा देते थे, लेकिन मालनकोफ साहब तो यह भी नहीं करते… मैं जब मानूँ कि वह अब्‍दुल्‍लाह मलिक को, जो उनका सबसे वफादार भानजा है, कोई छोटे-से खिताब से ही खुश कर दें… अब्‍दुल्‍लाह मलिक के लिए जेल जाकर आराम व तसल्‍ली से किताबें लिखने में कितनी आसानी हो जाएगी।

कुछ भी हो, मैं आपका गुलाम हूँ। आपने तो पहले तीन सौ रुपयों ही में मुझे हमेशा-हमेशा के लिए खरीद लिया था। अगर आप तीन सौ रुपए और भेज दें तो मैं दूसरी जि़ंदगी भी आपके नाम कर देने का वादा करता हूँ, बशर्ते कि अल्‍लाह मियाँ, जो आपसे बड़ा है, मेरे लिए पाँच-छ: सौ रुपए माहवार का वजीफा न मुकर्रर कर दे। अगर अल्‍लाह मियाँ ने किसी हव्‍वा से मेरा निकाह पढ़वा दिया तो अफसोस है कि यह वादा उस सूरत में बिलकुल पूरा न हो सकेगा - मेरी साफ बयानी की दाद दीजिए। बात दरअसल यह है कि मैं अल्‍लाह मियाँ और उनकी हव्‍वा के सामने चूँ तक भी न कर सकूँगा।

आजकल हमारे यहाँ शाही मेहमानों का ताँता लगा हुआ है - पहले शाह ईरान आए, फिर शाह इराक : फिर प्रिंस अली खाँ, आपकी रीटा हैवर्थ के साबिक शौहर : फिर महाराजा जयपुर और अब शाह सऊद वालिए सऊदी अरब।

मैं शाह सऊद खलिदुल्‍लाह के आने पर आँखों देखा और कानों सुना हाल आपको लिख रहा हूँ।

शाह सउद अपने पच्‍चीस शहजादों समेत हवाई जहाज के जरिए से कराची पहुँचे, जहाँ उनका बड़ा शानदार स्‍वागत हुआ - उनके शहजादे और भी हैं। मालूम नहीं, वे क्‍यों नहीं आए। शायद इसलिए कि दो-तीन हवाई जहाज और चाहिए होंगे, या उनकी उम्र उम्र बहुत छोटी होगी और वे अपनी माँओं की गोद को हवाई जहाज पर तरजीह देते होंगे - बात भी ठीक है। अपनी माँओं और ऊँटनियों का दूध पीनेवाले बच्‍चे ग्‍लैक्‍सो या काउ-गोट के खु़श्‍क दूध पर कैसे जी सकते हैं।

चचाजान गौर करने वली बात है - शाह सऊद के साथ माशाअल्‍लाह उनके पच्‍चीस साहबजादे थे। लड़कियाँ, खुदा मालूम कितनी होंगी। मुझे बताइए कि आपकी सात आजादियों वाले देश में कोई ऐसा हुनरमंद मर्द मौजूद है, जिसकी इतनी औलाद हो -चचाजान, यह सब हमारे मजहब इस्‍लाम की देन है। नाचीज की यह राय है कि आप फौरन अपनी सल्‍तनत का सरकारी मजहब इस्‍लाम करार दे दें इससे बड़े फायदे होंगे। करीब-करीब हर शादीशुदा मर्द को तीन और शादियाँ करने की इजाजत होगी। अगर एक औरत चार बच्‍चे भी बड़े कंजूसी से काम लेकर पैदा करे तो इस हिसाब से सोलह लड़के-लड़कियाँ एक मर्द की मर्दानगी और उसकी चार बीवियों के उपजाऊपन का सुबूत होंगे। लड़के और लड़कियाँ जंग में कितनी काम आ सकती हैं। आप तर्जुबेकार हैं और खुद अंदाजा लगा सकते हैं।

मैं अमृतसर का रहने वाला हूँ - मिस्‍टर रैड क्लिफ की मेहरबानी से यह अब भारत में चला गया है - इसमें एक हकीम थे, मुहम्‍मद अबू तराब। आपने अपनी जिंदगी में दस शादियाँ कीं। चार-चार करके नहीं, एक-एक करके। इन बीवियों से उनकी बेशुमार औलाद थीं। जब उन्‍होंने नब्‍बे बरस की उम्र में आखिरी शादी की तो पहली बीवी से उनके सबसे बड़के की उम्र पिचहत्तर बरस की थी और सबसे छोटे लड़के की उम्र, जो उनकी नौवीं बीवी के पेट से पैदा हुआ था, सिर्फ दो बरस की थी। एक सौ बारह बरस की उम्र में आपका देहांत यहाँ लाहौर में एक शरणार्थी की हैसियत से हुआ। किसी शाइर ने उनकी तारीखे़-वफात इस मशहूर मिस्रे में निकाली थी :

'हसरत उन गुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए।'

यह भी अल्‍लाह तबारक तआला और उसके मंजूरशुदा मजहब इस्‍लाम की बरकत है - अगर आपके शादीशुदा मर्दों को शुरू-शुरू में चार बीवियों को एक समय में एक साथ सँभालने में किसी किस्‍म की दिक्कत महसूस हो तो आप शाह सऊद को वहाँ बुलाकर उनकी सेवाओं से लाभ उठा सकते हैं। आप उनके दोस्‍त हैं। उनके मरहूम वालिद से तो आपकी गाढ़ी छनती थी। मैंने सुना था कि आपने उनके और उनके जनानखाने के लिए बड़ी आलीशान गाड़ियों का एक कारवाँ तैयार करके उनको उपहार स्‍वरूप पेश किया था -मेरा खयाल है, शाह सऊद आपको अपने तमाम सदरी नुस्खे बता देंगे।

हमारे पाकिस्‍तान के साथ आजकल सिवाय हिंदुस्‍तान और रूस के करीब-करीब हर देश दिलचस्‍पी ले रहा है। यह सब आपकी मेहरबानियों का नतीजा है कि आपने हमारी तरफ दोस्‍ती और सहयोग का हाथ बढ़ाया और हम इस काबिल हो गए कि दूसरे भी हम पर नजरे-कायम रखने लगे।

हम पाकिस्‍तानी तो इस्‍लाम के नाम पर मर मिटते हैं - एक जमाना था, जब हम मुस्तफा कमाल पाशा और अनवर पाशा के भक्‍त थे। अनवर पाशा के मरने की खबर आती तो हम सब लोग सोग मनाते और सचमुच आँसुओं से रोते। जब यह पता चलता कि अनवर पाशा खु़दा के फज्ल से जिंदा हैं तो हम खु़शी से नाचते, कूदते और घर में चिरागाँ करते - मुस्‍तफा कमाल और अनवर, दोनों एक-दूसरे के जानी दुश्‍मन थे। हमें इसका कुछ इल्म नहीं था - तुरकों को हिंदी मुसलमानों से कोई दिलचस्‍पी नहीं थी। वह हमको तीन में समझते थे न तेरह में। इसका हमें कुछ-कुछ पता था, लेकिन हमें उनसे मुहब्‍बत थी - हम ऐसे निहायत शरीफ और सादा हैं कि हमें आमले और चंबेली के उस तल से भी मुहब्‍बत है, जो यहाँ 'इस्‍लामी भाइयों का तैयार किया हुआ' मिलता है। उसको हम अपने सिरों में डालते हैं तो ऐसा सकून मिलता है कि मौजूदा जन्नत की तमाम लताफतें उसके सामने हल्‍की पड़ जाती हैं। हम सब बड़े बुद्धू, मगर बड़े प्‍यारे लोग हैं। खु़दा रहती दुनिया तक हमारी तमाम अच्‍छाइयाँ कायम रखे।

मैं बात शाह सऊद के दरूद मसऊद की कर रहा था, लेकिन जज्बाती होकर इस्‍लाम के गुण गाने लगा। बात यह है कि इस्‍लाम के गुण गाने ही पड़ते हैं। मजहब, ईसाई रिलीजन, बुद्ध मत आखिर यह क्‍या हैं - क्‍या इनके माननेवालों में कोई एक बेमिसाल मर्द पच्‍चीस लड़कों का बाप होने का दावा कर सकता है। इसीलिए मैंने आपको मश्‍वरा दिया था कि आप यू.एस.ए. का सरकारी मजहब इस्‍लाम स्‍थापित कर दें ताकि आपको कोई जापान फतेह करके हरामी-बच्‍चे पैदा करने की जरूरत महसूस न हो। चचाजान, क्‍या आपको हरामीपना पसंद है, मैं मुसलमान हूँ। मुझे तो खुदा और उसके रसूल की कसम, इससे सख्त नफरत है। बच्‍चे ही पैदा करने हैं तो इसका कितना सहज तरीका इस्‍लाम में मौजूद है - निकाह पढ़वाइए और बड़े शौक से बच्‍चे पैदा कीजिए। चचीजान अगर जिंदा हैं तो भी कोई बात नहीं। आप इस्‍लाम धर्म अपना कर तीन और शादियाँ कर सकते हैं। यहाँ पाकिस्‍तान में आप मशहूर एक्‍ट्रेस इशरतजहाँ बिब्‍बो को अपनी शादी कर ला सकते हैं, उन्हें कई शौहरों का तज्रबा है।

शाह सऊद बड़े पुरअज सहर शख्सियत के मालिक हैं। जहाज से बाहर निकलते ही आप हमारे लाहौर के मोची दरवाजे के गवर्नर जनरल जनाब गुलाम मुहम्‍मद खान से गले मिले और इस्‍लामी भाइयों की रजिस्‍टर्ड अखूवत व मुहब्‍बत का प्रदर्शन किया, जो बड़ा धार्मिक भेद-भाव मिटाने वाला था। आपकी अज्जत अफजाई में कराची के मुसलमानों ने अपनी हैसयित से बढ़कर नारे लगाए, जलसे किए, जुलूस निकाले, दावतें कीं और इस्‍लाम की चौदह सौ साला रवायात को कायम रखा।

सुना है, शाह सऊद अपने साथ एक सोने से भरा हुआ बक्‍स लाए थे, जो कराची के मजदूरों से बहुत मुश्किल से उठाया गया। आपने यह सोना कराची में बेच दिया और पाकिस्‍तान को बतौर मेहरबानी दस लाख रुपए मर्हमत फरमाए। फैसला हुआ कि इस रकम से गरीब शरणार्थियों के लिए एक कॉलोनी बनाई जाएगी, जिसका नाम सऊदआबाद होगा - रहे नाम अल्‍लाह का।

मोतबर जराए से मालूम हुआ है कि शाह सऊद खैरअंदेशी के तौर पर अपने दो साहबजादों की शादी हमारे पाकिस्‍तान में करना चाहते हैं। जहे नसीब।

सुना है, कराची में बेगम शाहनवाज को जब अरब शहजादों के लिए कोई मुनासिब रिश्‍ता न मिला तो उन्‍होंने बेगम बशीर को टेलीफोन किया कि वह लाहौर में रिश्‍ता ढूँढ़ना शुरू करें, इसलिए कि लाहौर आखिर लाहौर है और लाहौर में शहजादों के लाइक कुँवारी लड़कियों की क्‍या कमी है - चुनांचे सुना है कि बेगम बशीर ने बेगम जी.ए. खान और बेगम सलमा तसद्दुक के साथ मिलाकर रवायती नायन के फर्ज को निभाया और बड़े-बड़े घरानों में शाह सऊद के दो होनहार बेटों के लिए पैगाम लेकर गईं, मगर अफसोस है कि उन्हें कामयाबी नसीब न हुई। इसकी वजह यह बताई जाती है कि हमारे ऊँचे तबके की जवान और कुँवारी लड़कियों को अरब के यह 'ऊँट' एक आँख नहीं भाए। मैं समझता हूँ, यह उनकी गलती है। इससे पहले, जब कि पाकिस्‍तान नहीं बना था, सऊदी अरब से हिंदुस्‍तान के मुसलमानों का इस किस्‍म का रिश्‍ता हो चुका है। मौलाना दाऊद गजनवी और मौलाना इस्‍माइल गजनवी के खानदान की एक दोशीजा शाह सऊद के मरहूम बालिद बुजुर्गवार जनाब अब्‍दुलअजीज इब्‍ने सऊद की शादी में जा चुकी हैं। आपको शायद मालूम हो कि मौलाना इस्‍ताइल गजनवी ने इसी सिले में सत्ताईस हज किए थे, हालाँकि एक ही हज काफी था - में दिल बदस्‍त आवर के हज अकबर अस्‍त - गो बेगम बशीर, बेगम जी.ए.खान और बेगम तसद्दुक को इस नेककरम में नाकामी का सामना करना पड़ा है, लेकिन मुझे यकीन है, कोई-न-कोई राह निकल आएगी। हमारे पाकिस्‍तान में दो ऐसी लड़कियाँ बरामद हो जाएँगी, जिनको सरजमीने-हिजाज के शहजादे सरफराज फरमाएँगें।

मैंने अपने किसी पिछले खत में अपने यहाँ की ख्वातीन के बारे में आपको कुछ लिखा था, गालिबन उन ब्‍लाउजों के बारे में जो बड़ी उम्र की औरतें पहनती हैं और अपने कलबूत चढ़े पेटों की नुमाइश करती हैं। इस पर हमारी युनीवर्सिटी के शोबा-ए-फारसी के सदर जनाब डॉक्‍टर मुहम्‍मद बाकर साहब बहुत नाराज हुए। आपने मुझे कई इज्जतकश किस्‍म की गालियाँ दीं और इसलिए बहुत बुरा करार दिया कि मैंने अपने यहाँ की औरत का अपमान किया है - लाहौल वला - मैंने जो कुछ बयान किया था, महज यह था कि बूढ़ी औरतों को अपनी उम्र से इस किस्‍म के आधे नंगे चोंचले शोभा नहीं देते। मुझे डर है कि डॉक्‍टर साहब जब मेरा यह खत पढ़ेंगे तो मुझ पर फिर इल्जाम धरेंगे कि मैंने फिर अपनी 'औरत' का अपमान किया है।

बात असल में यह है कि हम लोग स्‍वाभाविकतः सादा लोह और बुद्धू हैं। हमारी औरतें तो भौंदी मुर्गियाँ हैं। जिधर हवा चलती है, हम उधर चल पड़ते हैं - शाह ईरान तशरीफ लाए तो ऊँची सोसाइटी की लड़कियों ने तरह-तरह से खु़द को सजाया कि शाह ईरान उन दिनों फुरसत पाए हुए थे। वह फरिया को तलाक दे चुके थे, मगर उन्‍होंने हमारी लड़कियों में सिर्फ रस्‍मी दिलचस्‍पी दिखाई और ईरान जाकर सुरैया अस्‍फदयार से शादी कर ली। इसके बाद प्रिंस अली खाँ आए। वह भी फरिग थे, इसलिए कि आपकी रीटा हैवर्थ उनसे तलाक हासिल कर चुकी थी। हमारी ऊँची सोसाइटी की लड़कियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर अपनी माँग-चोटी दुरुस्‍त की, नोक-पलक निकाली, मगर प्रिंस अली खाँ ने उनकी सारी उमंगों पर ठंडा बर्फ पानी फेर दिया और आपकी हालीवुड की एक और एक्‍ट्रेस जेन टर्नी से इश्‍क शुरू कर दिया खुदा - आपकी सात आजादियों वाले देश को कायमों-दायम रखे, फिर हमारे यहाँ शाह इराक आए, मगर हमारी ऊँची सोसाइटी की कुँवारी लड़कियाँ उन्हें देखकर बहुत मायूस हुईं, इसलिए कि वह कम उम्र थे। एक ने कहा : "हाए, इस बच्‍चे का तोखूल-कूद का जमाना है... क्‍यों इस बेचारे पर सल्‍तनत का बोझ डाला गया है..." इसी तरह एक बूढ़ी ने, जिसका पेट बहुत ज्‍यादा नंगा नहीं था, शाह इराक पर तरस खाकर कहा "बुड्ढों से इस गरीब को क्‍या दिलचस्‍पी हो गर... जाओ इन्‍हें इनके हम उम्रवालों से मिलाओ..." शाह इराक भी गए और अब शाह सऊद तशरीफ ले आए, अपने पच्‍चीस शहजादों समेत गवर्नमेंट हाऊस में उनकी शानदार दावत हुई, जिसमें ऊँची सोसाइटी की तमाम शादीशुदा और कुँवारी औरतों और लड़कियों ने शिरकत की। सिगरेट पीने की इजाजत नहीं थी, 'अब्‍दुल्‍लाह' की भी नहीं। वह सिगरेट के धुएँ के बगैर बहुत खु़श हुए और यह हिज उन्हें खालिस इस्‍लामी मेहमान नवाजी की बदौलत नसीब हुआ। उनके दो दर्जन से ज्‍यादा शहजादों ने अनारकली में सैकड़ों पाकिस्‍तानी जूते खरीदे और अपनी शुभकामनाओं का सुबूत दिया। अब यह जूते अरब के रेगिस्‍तान की रेत पर चलेंगे और अपने टिकाऊपन के जल्‍द खत्‍म हो जाने वाले कदमों के निशान अंकित करेंगे...

यह खत अधूरा छोड़ रहा हूँ, इसलिए कि मुझे पब्लिशर से अपनी नई किताब की रायल्‍टी वुसूल करनी है। वह दस रोज से वादे कर रहा है। मेरा खयाल है, आज वह दस रुपए तो जरूर देगा। यह मिल गए तो मैं यह खत पोस्‍ट कर सकूँगा, वर्ना ...

जैन टर्नी को एक उड़ता हुआ चुबंन

आपका खु़शनसीब

सआदत हसन मंटो

1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड, लाहौर

नौवाँ खत

चचाजान,

अस्‍सलामुअलैकुम।

मेरा पिछला खत अधूरा था, बस मुझे इतना ही याद रहा है - अगर याद आ गया कि मैंने उसमें क्‍या लिखा था तो मैं उसे पूरा कर दूँगा। मेरी याददाश्‍त यहाँ की बनी हुई शराब पी-पीकर बहुत कमजोर हो गयी है - यूँ तो पंजाब में शराब पीना मना है, मगर कोई भी आदमी बारह रुपए दो आने खर्च करके शराब पीने के लिए परमिट हासिल कर सकता है। इस रकम पे पाँच रुपए डाक्‍टर की फीस होती हैं, वो लिख देता है कि जिस आदमी ने यह रुपए खर्च किए हैं, अगर बाकायदा शराब न पिए तो उसके जीने का भरोसा नहीं।

मैं जानता हूँ, बहुत अर्सा हुआ, आपने भी अपने मुल्‍क में शराब पीना वर्जि़त कर दिया था। परमिटों का झगड़ा आपने नहीं पाला था - उसका नतीजा मन चाहा नहीं निकला था। बड़े-बड़े गैंगस्‍टर और बूट लैगर पैदा हो गए थे, जिन्‍होंने आपकी हुकूमत के मुकाबले में एक अपनी हुकूमत कायम कर ली थी। आखिरकार नाकाम होकर आपको यह हुक्म वापस लेना पड़ा था।

यहाँ इस किस्‍म की कोई वापसी नहीं होगी।

हमारी हुकूमत मुल्‍लाओं को भी खुश रखना चाहती है और शराबियों को भी। मजे की बात यह है कि शराबियों में कई मुल्‍ला मौजूद है और मुल्‍लओं में अक्सर शराबी -हरहाल में शराब बिकती रहेगी, इसलिए आपको मेरी तरफ से फिकरमंद नहीं होना चाहिए। यूँ भी आप काफी कठोर हैं। इतनी दफा लिख चुका हूँ कि यहाँ की शराब बड़ी जालिम है, लेकिन आपने कभी अपने खुशनसीब भतीजे को इसके नुक्सानात से बचाए रखने के लिए अपने यहाँ की व्हिस्‍की भेजने की जहमत नहीं उठाई मैं अब इसके बारे में आपसे कोई बात नहीं करूँगा। मुझे झोंकिए भाड़ में। मेरे मुल्‍क पाकिस्‍तान की फौजी सहायता जारी रखिए। मैं खुश मेरा खु़दा खुश।

मैं खुश हूँ कि आप मेरे खत अपने पाइप में जलाकर नहीं पीते। बल्कि गौर से पढ़ते हैं और मेरी सलाह पर काफी ध्‍यान देते हैं - इसी खुशी में आपको एक और सलाह देता हूँ। वह यह है कि अखबार 'जमींदार' को आप इस तरह से मदद दीजिए कि कानोंकान खबर न हो।

इसके भैंगे मैनेजिंग डायरेक्‍टर और नीम लँगड़े एडिटर को रुपया वुसूल करने का कोई सलीका नहीं। बानी-ए-'जमीनदार' के बेटे-मौलाना अख्तर अली खान, जिनको 'मौलाना' का खिताब विरासत में मिला है, भी यह सलीका नहीं रखते थे, इसलिए कि जब उनको महकमा-ए-तअल्‍लकाते आमा के साविक डायरेक्‍टर मीन नूर अहमद साहब की तरफ से (?) हजार रुपए 'मुँहबंदी' के मिले तो उन्‍होंने झट से एक नई अमरीकन कार खरीद ली और बड़े ठाट से उसके महुरत की रस्‍म अदा की। यह उनकी सरासर हिमाकत थी। वह इन दिनों जेल में हैं। खुदाकरे, वह उसी चारदीवारी में रहें और अपनी मजीद इमाकतों का सुबूत न दें। मगर मुझे हैरत है, उनके साहबजादे भी, जो आजकल 'जमींदार' की मैनेजिंग एडिटरी करते हैं, पढ़े-लिखे होने के बावजूद बिलकुल मूढ़ है।

पिछले दिनों इस अखबार के 'तैमूरलंग' को मेरी हमदर्दी का दौरा पड़ा था। अगर आपके पाँव में लंग न होता तो आप यकीनन पाकिस्‍तान के डॉक्‍टर मुसददक होते। आप जब जब लिखना शुरू करते हैं तो सारे जहाँ का दर्द आपकी गर्दन पर एक ऐसा आदमी सवार हो जाता है - जिसके गले में फंदा पड़ा हो। आपको खैर इससे पहले ही खबर मिल चुकी होगी कि जब डॉक्‍टर मुसददक की अपील की सुनवाई ईरान की अदालते आलिया में शुरू हुई तो इस पाकिस्‍तानी मशहूर लेखक डार ने, 'बेडार' तहरीर में जिसमें वह माहरियत रखता है, कहा : मैं कुछ कहना नहीं चाहता। मुझे उस जादूई अँगूठी पर पूरा यकीन है, जो मेरी बीवी ने मुझे पेश की थी।"

एक बार उन्‍होंने फौजी अदालत में सरकारी वकील को कुश्‍ती लड़ने की दावत दे मारी थी। इसके बाद उन्‍होंने फरमाया था कि वह भूख हड़ताल करेंगे और खुदा के फज्‍लो-करम से दो दिन के अंदर-अंदर अल्‍लाह को प्‍यारे हो जाएँगे, मगर वह अल्‍लाह को बुरे भी न हुए और माशाल्‍लाह जिंदा रहे। बेहोश तो वो अक्सर रहे - पाकिस्‍तानी डॉक्‍टर मुसददक, यानी जहूरुलहसन डार गो डॉक्‍टर नहीं, लेकिन बेहोश होते रहते हैं। जब भी उनको बेहोशी का दौरा पड़ता है तो अली सफयान आफाकी और मनसूर अली खाँ उनको मौलाना जफर अली खाँ की ईजाद की हुई लख-लख (संजीवनी) सुँघाते हैं ताकि वह होश में आ जाएँ और आज की डायरी लिखने के काबिल हो सके। उन्‍हीं की लँगड़ी टाँग देखकर किसी तरक्की पसंद ने एक शेर कहा था, जिसका मिस्रा-ए-सानी मुझे याद रहा : "एक तोड़ी खुदा ने दूसरी तोड़े रसूल।"

मेरा खयाल है, यह उस तरक्की पसंद शाइर की ज्यादती है, वर्ना डार साहब बड़े मुराने महारत हासिल किए हुए अखबार के एडिटर हैं। वह गालियाँ खा के भी बेमजा नहीं होते और गालियाँ और सुठनियाँ देकर भी उनका पेट नहीं भरता। और यह सब उस तिलिस्‍मी अँगूठी का असर है, जो गालिबन लड़कपन में उनको किसी चाहनेवाले ने दी थी।

मुझे कहना यह था कि अगर आप 'जमींदार' को 'अखबारी' मदद दें तो मेरे माध्‍यम से दें ताकि मैं अपने हमदर्द प्रसिद्ध लेखक डार के लिए उसका हिस्‍सा अलग करके उसके हवाले कर दूँ - बेचारा मेरे घरबार का बड़ा खयाल रखता है। मेरे मजमून की आम कीमत पचास रुपए है। उसने उस खयाल से कि मैं उस पैसे को शराब में उड़ा दूँगा, अपने खास नंबर के लिए मुझसे एक मजमून तलब किया और उसकी कीमत बिना गलती किए बीस रुपए तय की और यह फैसला किया कि वह इस रकम का चेक मेरी बीवी की सेवा में पेश करेगा ताकि मेरी सात पीढि़यों पर उसका एहसान रहे - मैं हरहाल में उसका अहसानमंद हूँ कि उसको मेरी 'बदजात' से इतनी तलछट दिलचस्‍पी है।

यहाँ के सब अखबारों में एक सिर्फ 'जमींदार' ही ऐसा अखबार है जिसको आपके डालर, जब चाहें खरीद सकते हैं। अगर अख्तर अली खाँ रिहा हो गए तो मैं कोशिश करूँगा कि प्रसिद्ध लेखक डार ही इसका एडिटर रहे। बड़ा बरर्खु़दार लड़का है।

लेकिन आप अपने असर रुसूख से काम लेकर मीर नूर अमद साहब का फिर महकमा-ए-तअल्‍लुकाते आमा का डायरेक्‍टर बनवा दीजिए। सरफराज साहब किसी काम के आदमी नहीं। वह लाखों रुपया अखबारों में बाँटने में बिल्‍कुल काबिल नहीं। बेहतर होगा, अगर आप रुपया मेरी मार्फत भेजा करें। मेरा उन पर इस तरह कुछ रोब भी रहेगा और आपके प्रोपेगंडे का काम भी मेरी निगरानी में सही ढंग से होता रहेगा।

आपके अखबार जो यहाँ छपते हैं, अक्सर रद्दी में बिकते हैं - 'रद्दी बोतलवाले' आपके बहुत शुक्रगुजार हैं। इन अखबारों के कागज चूँकि मजबूत होते हैं सौदा-सुलफ के लिए लिफाफे बनाने के काम आते हैं, आप इन्‍हें जारी रखिए कि हमारे यहाँ कागज की शदीद किल्‍लत है - मगर चलते-चलाते आप यहाँ के रद्दी में न बिकने वाले परचे भी खरीद लिया कीजिए।

चचाजान, मैंने एक बहुत फिक्र पैदा करने वाली खबर पढ़ी है। मालूम नहीं, कम्‍युनिस्‍टों की फैलाई हुई अफवाह है या क्‍या है। अखबारों में लिखा था कि आपके यहाँ खिलाफे वजे फितरी के अफआल जोरों पर हैं। अगर यह दुरुस्‍त है तो बड़ी शर्म की बात है। आपकी मिलियन डालर टाँगोवाली लड़कियों को क्‍या हुआ? डूब मरने का मकाम है उनके लिए।

खु़दा ना करे अगर यह सिलसिला आपके यहाँ शुरू हो चुका है तो अपने सारे आस्‍कर वाइल्‍ड यहाँ रवाना फरमा दीजिए। यहाँ उनकी खपत हो सकती है। वैसे भी हम लोग आपकी फौजी इमदाद के पेशे-नजर हर खिदमत के लिए तैयार हैं।

मालूम नहीं, कामरेड सिब्‍ते हसन ने किसी-न-किसी तरीके से मेरा खत पढ़ लिया है। मेरा खयाल है, यह वह खत है जो कामरेड अहमद राही ने ऊपर-ऊपर से उड़ा लिया था। इसे पढ़कर सिब्‍ते हसन ने मुझे एक खत लिखा है। जरा उसकी ढिठाई मुलाहिजा फरमाइए - कहता है : "सआदत, तुम खुद कम्‍युनिस्‍ट हो। चाहे मानो, न मानो चचाजान, यह खत जरूर आपकी नजरों से गुजरेगा। मैं आपकी सात आजादियों और आपके डालरों को हाजिर नाजिर रख के कहता हूँ कि मैं कभी कम्‍युनिस्‍ट था न अब हूँ। यह महज सिब्‍ते हसन की बड़ी कम्‍युनिस्‍ट किस्‍म की शरारत है, जो आपके और मेरे संबंध खराब करने पर तुला हुआ है, वर्ना जैसा कि आपको मालूम है, मैं आपका बरर्खु़दार और नमक ख्‍वार हूँ। यह अलग बात है कि उन तीन सौ रुपयों की, जो आपने कभी मुझे भेजे थे, मैंने सिर्फ जिमखाना व्हिस्की" पी थी, जिसकी तारीफ अपने किसी पिछले खत में कर चुका हूँ। मैंने एक धेले का भी नमक नहीं खरीदा था। मुसीबत यह है कि डॉक्‍टरों ने मुझे नमक खाने से मना कर रखा है। जूँही उन्‍होंने इजाजत दी, मैं आपको लिख दूँगा, ताकि आप वहाँ से खालिस अमरीकी नमक मेरी रोजमर्रा की खुराक के लिए भेजते रहें और मैं सही मानों में आपका नमक ख्वार कहला सकूँ।

मैं एक बार फिर यकीन दिलाना चाहता हूँ कि मैं कम्‍युनिस्‍ट नहीं हूँ और न हो सकता हूँ। मैं कादयानी बन जाऊँगा, मगर कम्‍युनिस्‍ट कभी नहीं बनूँगा, इसलिए कि साले महज जबानी जमा खर्च से काम लेते हैं। हाथ से कुछ भी देते-दिलाते नहीं। यूँ तो कादयानी भी इसी किस्‍म के खसीस हैं फिर भी वह पाकिस्‍तानी तो हैं। इसके अलावा मैं उनसे कोई बिगाड़ पैदा नहीं करना चाहता, क्‍योंकि मुझे मालूम है, आपको हाइड्रोजन बम के तज्रबों के बाद फौरन एक नबी (अवतार) की जरूरत होगी, जो सिर्फ मिर्जा बशीरुद्दीन महमूद ही जुटा सकते हैं।

आजकल यहाँ के कट्टर मुसलमान सर जफफरूल्‍लाह के बहुत खिलाफ हो रहे हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें वजारत की गद्दी से उतार दिया जाए, सिर्फ इसलिए कि वह कादयानी हैं। जाती तौर पर मुझे उनसे कोई रंजिश नहीं - मैं समझता हूँ, वह आपके लिए बहुत काम के साबित हो सकते हैं। मेरी सलाह है कि आप उनको अपने यहाँ बुला लें। खु़दा के फज्‍लो-करम से वह आपके यहाँ की तमाम जिंसी बदचलनी को दूर कर देंगे।

इराक की हुकूमत की तरफ से आज यह ऐलान सुना है कि आप उस इस्‍लामी मुल्‍क को भी फौजी इमदाद देने पर रजामंद हो गए हैं। यह भी मालूम हुआ है कि यह इमदाद बेशर्त होगी - चचाजान, आप मेरे पास होते तो मैं आपके पाँव चूम लेता। खुदा आपको रहती दुनिया तक सलामत रखे। इस्‍लामी देशों पर आपकी जो नजरे-करम हो रही है, उससे साफ पता चलता है कि आप बहुत जल्‍द इस्‍लाम धर्म ग्रहण करने वाले हैं।

मैं इससे पेशतर आपको मजहब इस्‍लाम की चंद खूबियाँ बयान कर चुका हूँ। अगर आप इस सआदत से मुशर्रफ हो चुके हैं तो फौरन तीन और शादियाँ कर लीजिए -अगर चचीजान जि़ंदा हों - अपने यहाँ की मशहूर एक्‍ट्रेस इशरत जहाँ बिब्‍बो को मैंने तैयार कर लिया है। आपकी दूसरी शादी इसी पाकिस्‍तानी खातून से होनी चाहिए, इसलिए कि वह कई शौहरों का तज्रबा रखती है, और पीना-पिलाना भी जानती है। फिलहाल वह शादीशुदा है, लेकिन मैं उससे कहूँगा तो वह अपने पाँचवें या छटे शौहर से तलाक, हासिल कर लेगी।

हाँ चचाजान, यह मैंने क्‍या सुना है कि आपकी रीटा हैवर्थ रूस जा रही है - खु़दा के लिए उसे रोकिए। उसने सर आगाखान के साहबजादे पिंगस अली खाँ से शादी की थी, मुझे इस पर कोई एतिराज नही था। लेकिन उसके रूस जाने पर मुझे एतिराज है। मुझे हैरत है कि आपने अभी तक उस शरीर औरत के कान क्‍यों नहीं ऐंठे।

रीटा हैवर्थ के रूस जाने की खबर मुझे कामरेड सिब्‍ते हसन ने बड़े फख्र से सुनाई थी। कमबख्त हल्‍के से मुसकरा रहा था, जैसे आपका मजाक उड़ा रहा हो - यह हकीकत है कि अगर रीटा रूस चली गई तो आपका और मेरा, दोनों का ऐसा मजाक उड़ेगा कि तबीयत साफ हो जाएगी।

कहीं यह पारानुमा सिफतों वाली एक्‍ट्रेस मालनकोफ से शादी करने तो नहीं जा रही? अगर यही सिलसिला है और इसमें आपकी कोई सियासी चाल है तो कोई हर्ज नहीं। दूसरी सूरत में हरहाल में अपमानजनक और खतरनाक है।

आज के अखबारों में यह भी लिखा था कि रीटा के खिलाफ उसकी और प्रिंस अली खान की बच्‍ची यासमीन और उसकी बड़ी लड़की, जो मालूम नहीं किस पति से है, की सही तौर पर परवरिश न करने के इल्जाम में मुकदमा चल रहा है और कि दोनों लड़कियाँ अदालत के संरक्षण में हैं। यह भी लिखा था कि रीटा पश्चिमी फलोरेडा में है, जहाँ हुकूमत उसके चौथे शौहर को देश निकाला देने की कोशिश में मसरूफ है - यह किस्‍सा क्‍या है? मैंने अहमद राही से पूछा था, लेकिन वह गोल कर गया। उसकी बातों से, मैं अपनी बख्‍शी हुई सूझ-बूझ से इतना मालूम कर सका कि यह सब रूसियों की कारस्‍तानी है। मेरी समझ में नहीं आता कि आप अभी तक खामोश क्‍यों हैं।

मैं तो आपको यह राय देता हूँ कि रीटा के चौथे खाविंद का, जो सुना है कि संगीतकार है, वहाँ फाँसी पर लटका दें - एटम बम या हाइड्रोजन बम बनाने के राज रूस के पास बेचने के इल्जाम में गिरफ्तार करके - और रीटा को फौरन यहाँ भेज दें। उससे कहें कि वह हमारे मिस्‍टर सहरवर्दी को फाँसकर उनसे शादी कर ले। इसके बाद वह मौलाना भाशानी से शादी कर रिश्‍ता कायम कर सकती है। फिर शेरे-बंगाल चौधरी फजल हक साहब खु़दा के फज्‍लो-करम से मौजूद हैं और मशरिकी पाकिस्‍तान के वजीरे-आला मुकर्रर हैं। इन तीन बड़ों से तलाक लेने के बाद वह साबिक वजीरे आजम ख्वाजा नाजिमुद्दीन से संपर्क कर सकती है - जिंदा रहा तो मैं भी हाजिर हूँ, लेकिन इस शर्त पर कि आप मेरी माली इमदाद लगातार करते रहें।

आपके अखबारात की इत्तिला है कि यू.एन.ओ. में हमारे पाकिस्‍तान के मुस्‍तकिल नुमाइंदे प्रोफे़सर ए.एस. बुखारी को सूचना विभाग के उच्‍च पद की पेशकश की है - मैंने तो यह सुना था कि सर जफरुल्‍लाह को अलहदा करके बुखारी साहब को बजीरे खारजा नियुक्‍त किया जाएगा, मगर मालूम होता है कि आप उन्हें मुस्‍तकिल तौर पर अपने पास ही रखना चाहते हैं।

बुखारी साहब को मैं अच्‍छी तरह जानता हूँ। उनको मुझ से बहुत प्‍यार है, जिसका इजहार वह हर पाँचवें या छटे बरस के बाद किसी-न-किसी अंदाज से करते रहते हैं। आप तो सिर्फ इतना जानते होंगे कि वह अंग्रेजी जबान के बहुत बड़े जादू बयान मुकर्रिर हैं, लेकिन मैं उनको व्‍यंगकार की हैसियत से भी जानता हूँ उनका एक मशहूर मजमून 'लाहौर का जुगराफिया' है, जिसे पढ़कर बड़े-बूढ़ों के इस कौल की सौ फीसदी तसदीक हो जाती है कि लाहौर, लाहौर है, और बुखारी, बुखारी।

उनसे कहिए कि वह आपके अमरीका का भी जुगराफिया लिखें ताकि आपकी सरहदों से तमाम दुनिया अच्‍छी तरह वाकिफ हो जाए - इसका रूसी जबान में तर्जुमा कराके मामूँ मालनकोफ को जरूर भेज दीजिएगा।

लिखता मैं भी अच्‍छा हूँ, लेकिन मुसीबत यह है कि मैं आपके घर की मुर्गी बनकर दाल बराबर हो गया हूँ। वर्ना मैं आपकी शान में ऐसे-ऐसे कसीदे लिख सकता हूँ, जो 'नवा-ए-वक्त' के हमीद निजामी के फलक को भी सूझ नहीं सकते। एक बार मुझे अपने यहाँ बुलाइए, दो-तीन महीने अपनी सात आजादियों के मुल्‍क की सैर कराइए, फिर देखिए, यह बंदा-ए-आजाद आपकी तमाम खुफिया सलाहियतों और खूबियों का समर्थन किन जानदार शब्‍दों में करता है। मुझे यकीन है, आप इस कदर खुश होंगे कि मेरा मुँह डालरों से भर देंगे।

जापान के साइंसदानों ने एक ऐलान में इस बात की खोज की है कि हाइड्रोजन बम का मौसम पर भी असर पड़ता है - हाल ही में आपने मार्शल के टापुओं में इस बम के जो तज्रबे किए थे, इन लोगों का कहना है कि जापान के मौसम पर उनका यह असर पड़ा है कि अप्रैल खत्‍म होने के बावजूद बावजूद वहाँ अच्‍छी खासी सर्दी है। मालूम नहीं, इन चपटे जापानियों को सर्दी क्‍यों पसंद नहीं। हम पाकिस्‍तानियों को तो बहुत पसंद है। आप मेहरबानी करके एक हाइड्रोजन बम हिंदुस्‍तान पर फेंक दें। हमारे यहाँ गर्मियों का मौसम शुरू हो चुका है। सर्दी हो जाए तो मैं बड़े आराम में रहूँगा।

रीटा से पूछिए, अगर वह मान जाए तो पाकिस्‍तान में उसकी पहली शादी मुझी से रहे। जवाब से जल्‍द सरफराज फरमाइएगा।

आपका ताबेफरमान भतीजा

सआदत हसन मंटो

1954

31, लक्ष्‍मी मैन्‍शंज, हॉल रोड, लाहौर

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