मुस्तनद और जामे कुल्लियात-ए-मंटो की जिल्द सोम मंटो की उन अफ़्सानवी तहरीरों पर मुश्तमिल है जो किताबी सूरत में मंटो की वफ़ात के बाद शाय हुईं। इन में से कुछ तहरीरें मंटो की ज़िंदगी में अदबी रसाइल में छप चुकी थीं और बहुत सी ग़ैर-मतबूआ थीं। इन तहरीरों को मुख़्तलिफ़ पब्लिशरज़ ने किताबी सूरत में शाय किया। मसलन बग़ैर इजाज़त, बुर्के, शिकारी औरतें, रत्ती माशा तौला किताबी सूरत में सामने आईं जब कि रिसाला नुक़ूश ने जब 1955-ई-में मंटो नंबर मुरत्तब किया तो उन्हों ने मंटो की बीस कहानियां ग़ैर-मतबूआ के उनवान से शाय कीं। इन में से १९ तो कहानियां थीं जबकि बीसवीं तहरीर कमीशन ड्रामा है जो इस से पेशतर इंसाफ़ के नाम से शाय हो चुका था।
बाक़ियात-ए-मंटो के उनवान से एक मजमूआ साक़ी बिक डिपो दिल्ली ने 2002-ई-में शाय किया। इस मजमुए में मंटो के नौ अफ़्सानों के बारे में ये दावा किया गया था कि वो पहली बार शाय हो रहे हैं। जबकि ये वही अफ़्साने थे जो इस से पेशतर बलराज मैनरा शाय कर चुके थे और इन अफ़्सानों का मुसव्वदा उन्हों ने ख़ुद पाकिस्तान आ कर मंटो के ख़ानदान से हासिल किया था। इस तरह २१ अफ़साने पहली बार किताबी सूरत में शाय करने का ऐलान भी किया गया था। इन में से एक तहरीर पांचवां मुक़द्दमा अफ़्साना नहीं और मंटो के अफ़्साने ऊपर नीचे और दरमयान पर चलने वाले मुक़द्दमे की रूदाद है। जबकि छः तहरीरें आमना, बाई बाई, इफ़्शा-ए-राज़, जान मोहम्मद, बस स्टैंड और मिलावट इस से पहले मंटो के नुक़ूश नंबर में शाय हो चुकीं थीं और ज़ेर-ए-नज़र मजमुए में इसी उनवान के तहत मौजूद हैं। ग़ालिब चौधवीं और हशमत ख़ान ड्रामा है और मंटो ड्रामे वाली जिल्द में मौजूद है। दिलचस्प बात ये है कि किताब के पब्लिशर ने इन ज़राए की बिलकुल निशान-देही नहीं की जिस से ये अफ़्साने हासिल किए गए हैं।
मोहम्मद सईद ने नवादिरात-ए-मंटो के नाम से किताब शाय की जिस में दीगर तहरीरों के इलावा मंटो के आठ अफ़्साने भी शामिल-ए-इशाअत थे। मोहम्मद सईद ने उन ज़राए की तरफ़ इशारा कर दिया था जिस की मदद से वो इन अफ़्सानों को हासिल करने में कामयाब हुए। इस मजमुए में वो मंटो नवादिरात के उनवान से शामिल हैं।
मंटो की वफ़ात के बाद एक नावल बग़ैर उनवान के शाय किया गया लेकिन इस नावल की कोई दाख़िली शहादत इस जानिब इशारा नहीं करती कि ये मंटो की तख़लीक़ है। इसी तरह मंटो की वफ़ात के बाद कई अफ़्साने ऐसे शाय हुए जिन के बारे में वाज़ेह शकूक मौजूद हैं कि वो मंटो की तहरीर नहीं हैं। मुरत्तिब ने ज़ेर-ए-नज़र किताब में मंटो के नाम से शाय होने वाली तमाम तहरीरों को यकजा कर दिया है ताकि मंटो के काम से दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए आसानी पैदा हो जाये और मुस्तक़बिल में इन तहरीरों के हवाले से कोई वाज़ेह मौक़िफ़ इख़्तियार करने के लिए ज़्यादा बेहतर बुनियादें मयस्सर आ सकीं।
मुस्तनद और जामे-ए-कुल्लियात मंटो में कल 87 अफ़्साने और एक नावल शामिल है। इस के साथ ही मंटो के अफ़्सानवी अदब की तदवीन का काम मुकम्मल हो गया है। आइन्दा चार जिल्दें मंटो के ड्रामों, ख़ाकों, मज़ामीन और तराजिम पर मुश्तमिल होंगी।
मंटो के हवाले से इस काम पर क़ारईन की आरा का इंतिज़ार रहेगा।
अमजद तुफ़ैल
यक्म जुलाई 2012-ई-
बाक़ियात-ए-मंटो के उनवान से एक मजमूआ साक़ी बिक डिपो दिल्ली ने 2002-ई-में शाय किया। इस मजमुए में मंटो के नौ अफ़्सानों के बारे में ये दावा किया गया था कि वो पहली बार शाय हो रहे हैं। जबकि ये वही अफ़्साने थे जो इस से पेशतर बलराज मैनरा शाय कर चुके थे और इन अफ़्सानों का मुसव्वदा उन्हों ने ख़ुद पाकिस्तान आ कर मंटो के ख़ानदान से हासिल किया था। इस तरह २१ अफ़साने पहली बार किताबी सूरत में शाय करने का ऐलान भी किया गया था। इन में से एक तहरीर पांचवां मुक़द्दमा अफ़्साना नहीं और मंटो के अफ़्साने ऊपर नीचे और दरमयान पर चलने वाले मुक़द्दमे की रूदाद है। जबकि छः तहरीरें आमना, बाई बाई, इफ़्शा-ए-राज़, जान मोहम्मद, बस स्टैंड और मिलावट इस से पहले मंटो के नुक़ूश नंबर में शाय हो चुकीं थीं और ज़ेर-ए-नज़र मजमुए में इसी उनवान के तहत मौजूद हैं। ग़ालिब चौधवीं और हशमत ख़ान ड्रामा है और मंटो ड्रामे वाली जिल्द में मौजूद है। दिलचस्प बात ये है कि किताब के पब्लिशर ने इन ज़राए की बिलकुल निशान-देही नहीं की जिस से ये अफ़्साने हासिल किए गए हैं।
मोहम्मद सईद ने नवादिरात-ए-मंटो के नाम से किताब शाय की जिस में दीगर तहरीरों के इलावा मंटो के आठ अफ़्साने भी शामिल-ए-इशाअत थे। मोहम्मद सईद ने उन ज़राए की तरफ़ इशारा कर दिया था जिस की मदद से वो इन अफ़्सानों को हासिल करने में कामयाब हुए। इस मजमुए में वो मंटो नवादिरात के उनवान से शामिल हैं।
मंटो की वफ़ात के बाद एक नावल बग़ैर उनवान के शाय किया गया लेकिन इस नावल की कोई दाख़िली शहादत इस जानिब इशारा नहीं करती कि ये मंटो की तख़लीक़ है। इसी तरह मंटो की वफ़ात के बाद कई अफ़्साने ऐसे शाय हुए जिन के बारे में वाज़ेह शकूक मौजूद हैं कि वो मंटो की तहरीर नहीं हैं। मुरत्तिब ने ज़ेर-ए-नज़र किताब में मंटो के नाम से शाय होने वाली तमाम तहरीरों को यकजा कर दिया है ताकि मंटो के काम से दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए आसानी पैदा हो जाये और मुस्तक़बिल में इन तहरीरों के हवाले से कोई वाज़ेह मौक़िफ़ इख़्तियार करने के लिए ज़्यादा बेहतर बुनियादें मयस्सर आ सकीं।
मुस्तनद और जामे-ए-कुल्लियात मंटो में कल 87 अफ़्साने और एक नावल शामिल है। इस के साथ ही मंटो के अफ़्सानवी अदब की तदवीन का काम मुकम्मल हो गया है। आइन्दा चार जिल्दें मंटो के ड्रामों, ख़ाकों, मज़ामीन और तराजिम पर मुश्तमिल होंगी।
मंटो के हवाले से इस काम पर क़ारईन की आरा का इंतिज़ार रहेगा।
अमजद तुफ़ैल
यक्म जुलाई 2012-ई-
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